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आयुर्वेद में अमृत है नीम….

neemनीम के वृक्ष का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। प्रकृति की इस महत्वपूर्ण देन नीम के वृक्ष की पत्तियां, छाल, कोंपलें चिकित्सा के काम आती हैं। मनुष्य की चिकित्सा करने के लिए नीम को आयुर्वेद में सर्वगुण संपन्न वृक्ष माना गया है। नीम में शीतल कृमिनाशक, सृजन नाशक आदि गुण पाये जाते हैं। यह कुष्ठ रोग, वातरोग, विषरोग, विषदोष, खांसी ज्वर, रुधिर दोष, टीबी, खुजली आदि दूर करने में सहायक है। चिकित्सा में इसका उपयोग प्रमेह, मदुमेह, नेत्ररोग में भी किया जाता है। नीम में साधारण रूप से कीटाणुनाशक शक्ति है। नई कोपलों का नित्य प्रतिसेवन करने से शरीर स्वस्थ व प्रसन्न रहता है। नीम के तेल में मार्गसिन नामक उड़नशील तत्व पाया जाता है। इस तेल की मालिश करने से गठिया व लकवा रोग में लाभ होता है। इसके बीज में तीस प्रतिशत तक एक तेल रहता है, जो गहरे पीले रंग का कड़वा, तीखा व दुर्घन्धयुक्त होता है। इस तेल में फोलिक एसिड रहता है।

नीम का उपयोग विषम ज्वर में भी किया जाता है। इसके पानी का उपयोग एनिमा व स्पंज बाथ में किया जाता है। बुखार में एक काढ़ा तैयार किया जाता है। ज्वर उतारने के लिए नीम के इस काढ़े को आयुर्वेदाचार्यों ने अमृत कहा है। काढ़ा तैयार करने के लिए 250 ग्राम पानी, तुलसी के दस पत्ते, काली मिर्च के दस पत्ते, नीबू एक-एक टुकड़ा, अदरक, नीम के पांच पत्तियां प्रयोग में लायी जाती हैं। सबसे पहले काली मिर्च व अदरक को पीसकर 250 ग्राम पानी में डालकर अच्छी तरह उबाला जाता है। पानी आधा रहने पर उसको छान कर उस काढ़े को पीकर सो जाते हैं, जिससे शरीर में पसीना निकलता है। इससे बुखार, खांसी व सिरदर्द में लाभ होता है। महिलाओं के श्वेत प्रदर रोग में भी नीम लाभकारी है। इस रोग में नीम व बबूल की छाल का काढ़ा तैयार करके श्वेत प्रदर में उपयोग करने से अच्छा लाभ मिलता है। खुजली में नीम की गिरी नित्य खाते रहने से  तथा नीम की कोमल पत्तियां खाने से आराम मिलता है। नीम की सूखी पत्तियां, कपड़ों व अनाज में रखने से वे खराब नहीं होते। नीम का वृक्ष आक्सीजन भी अधिक देता है।