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प्रणव मुखर्जी के आरएसएसएस कार्यक्रम की सोशल मीडिया पर तीखी आलोचना

नई दिल्ली, पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के आरएसएसएस के शिविर में संबोधन की सोशल मीडिया पर तीखी आलोचना हो रही है। राजनैतिक नेताओं से लेकर , साहित्यकार, पत्रकार, प्रोफेसर, युवा एक्टिविस्ट भी इस अभियान मे शामिल हैं।

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जेएनयू के प्रोफेसर विवेक कुमार ने अपनी फेसबुक वाल पर लिखा –

प्रणव मुखर्जी के आरएसएसएस के शिविर में संबोधन में केवल प्राचीन भारत एवं आधुनिक भारत का सेलेक्टिव ज़िक्र था. जैसे प्राचीन भारत में आर्यों के बारे में भी वो मौन ही रहे.पता नही क्यों उन्होने मध्य काल को पूरा नज़र अंदाज कर दिया. न रविदास, ना कबीर, ना दादू, चोखमेला, यहाँ तक नानक का भी ज़िक्र नही था. उन्होने भारत को गंगा-जमुनी तहज़ीब का पुंज तो ज़रूर बताया. परंतु यह गंगा-जमुनी तहज़ीब कैसे बनी इसका ज़िक्र उन्होने एक बार भी नही किया. क्या यह गंगा-जमुनी तहज़ीब भारत की 450 से अधिक जॅन-जातियों (जिनकी आबादी 8.5% है), 1200 दलितों जातियों (जिनकी संख्या लगभग 18%), 3743 अति-पिछड़ी जातियाँ (जिनकी आबादी लगभग 52% है) और लगभग 15 प्रतिशत धर्माणतरित अल्पसंख्यकों के योगदान के बगैर बन सकती है?

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अगर नही तो प्रणव मुखर्जी ने अपने इस संबोधन में उपरोक्त सामाजिक समूहों का ज़िक्र क्यों नही किया. उन्होने इतिहास के एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य की भी अनदेखी की. उन्होने यह नही बताया ही नही कि इस्लाम भारत में विशेषकर तीन लहरों मे आया. पहला-व्यापारियों के साथ, दूसरा सूफ़ियों के साथ और तीसरा आक्रांताओं के साथ. उन्होने केवल तीसरी लहर का ज़िक्र किया और अन्य दो लहरों को भुला दिया. भारत की गंगा-जमुनी संस्कृति को बनाने में यह दोनो इन दोनो लहरो का ख़ासा योगदान है जो आज भी विद्ड़मान है. परन्तु प्रणब जी इन्हे भूल गये.

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उन्होने आधुनिक भारत मे टैगोर,गाँधी,सुरेंद्रनाथ,नेहरू,पटेल का ज़िक्र किया. राष्ट्र-भक्ति को संविधान के प्रति प्रतिबद्धता की परिभाषा भी दी किंतु आधुनिक भारत के निर्माण में बाबसाहेब आम्बेडकर के योगदान का नाम तक नही लिया तो जोतिबा फूले एवं पेरियार का नाम क्या ही लेते. भारत की संस्कृति एवं सभ्यता के निर्माण में भारतीय महिलाओं का क्या योगदान है उन्होने इसका भी ज़िक्र नही किया. और ना ही यह ही बताया की आज भी भारत एक कृषि प्रधान देश है और वे भी हमारी संस्कृति के निर्माण में अपना योगदान देते है. क्या राष्ट्र का निर्माण उपरोक्तं संतोों,समुदायों,सामाजिक समूहों एवम् व्यक्तियों का संज्ञान लिए हुए बगैर किया जा सकता है. अतः मेरे लिए प्रणव मुखर्जी का यह संबोधन केवल एक उच्च-वार्णीय हिंदू भारत के उद्घोश से ज़्यादा कुछ नही था.

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प्रसिद्ध साहित्यकार वीरेंद्र यादव ने अपनी फेसबुक वाल पर लिखा –

फहराता भगवा ध्वज, नमस्ते सदा वत्सले का गायन, लट्ठधारी स्वयंसेवकों की युद्धमुद्रा में दो घंटे की कवायद और पाद संचालन सारे देश ने देखा। यह सब पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के जाने से ही हुआ। उनका अंग्रेजी भाषण आम जन की भाषा सामर्थ्य से परे था। मोहन भागवत की toungue in cheek बात सबने सुनी समझी। लेकिन प्रणब मुखर्जी की उपस्थिति में भागवत भजन के पूर्व संघ के एक कार्यवाहक का मंच से हिन्दू एकता और हिन्दू समाज सेवा की बात करना संघ के असली मन्तव्यों का खुलासा करने वाला था।

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सच तो यह है कि प्रणब मुखर्जी का भाषण किसी आई ए एस परीक्षार्थी द्वारा Nation, Nationalism and Patriotism विषय पर लिखे गए अच्छे निबंध सरीखा था, जिसमें मेगास्थनीज, फहियान, व्हेनसांग, मौर्य गुप्त साम्राज्य, इस्लामी आक्रांता , अंग्रेजी शासक से लेकर चाणक्य के अर्थशास्त्र और डिस्कवरी आफ इंडिया तक की चर्चा थी। गांधी, टैगोर, नेहरू ,पटेल का जिक्र तो हुआ लेकिन मौलाना आज़ाद और आंबेडकर का नाम cospicuous by absence था। होशियार छात्र के मन में आता तो है ही कि कहीं परीक्षक अलग सोच का हुआ तो नंबर न कम कर दे।
फिलहाल अंत भला तो सब भला। आर एस एस ने अपनी सहिष्णु जनतांत्रिक छवि पेश करने का स्वांग रचकर अपनी लाठी कुशलता के साथ भांजी। प्रणब दा को संतोष हुआ कि वे वर्तमान कांग्रेस नेतृत्व के समक्ष खुद की अहमियत मनवाने में सफल हुए। 
So, finally jury goes in favour of RSS. प्रणब दा की यह बात स्वर्णाक्षरों में दर्ज होगी कि हेडगेवार भारत मां के महान सपूत थे।

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युवा सोशल मीडिया एक्टिविस्ट सोनल ने अपनी फेसबुक वाल पर लिखा –

पूर्व राष्ट्रपति द्वारा किसी भी सम्मेलन अथवा कार्यक्रम में शामिल होने की स्थिति में प्रारम्भ राष्ट्रगान से होता हैं लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नागपुर कार्यालय में नमस्ते सदा वत्सले से शुरू हुआ है और तिरंगा की जगह भगवा ध्वज लहरा रहा है.
यह है संविधान को बदलना.
यह है हिन्दू-राष्ट्र का आगमन.
यह है तिरंगे को भगवा में बदलना.

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