Breaking News

मंदिरों की व्यवसायीकरण की प्रवृत्ति से हो रहे हैं दुखद हादसे

tempel blastकेरल के पुत्तिंगल देवी मंदिर हादसे में जो हुआ वह दुखद है. लेकिन इस घटना ने मंदिरों की व्यवसायीकरण की प्रवृत्ति को उजागर कर दिया है.भक्तों को आकर्षित करने के लिए मंदिरों मे मनोरंजन की चाशनी घोली जा रही है. मंदिर अब मनोरंजन स्थल बनते जा रहें हैं. िजसमे सिनेमा का  नाच, आतिशबाजी आदि शामिल है. जिसके कारण एसे दुखद हादसे जन्म ले रहें हैं.

दक्षिणी राज्य केरल का मंदिर अपनी आतिशबाज़ी के लिए ही मशहूर था.देवी को ख़ुश करने के लिए वे आतिशबाज़ी करते हैं. इस मंदिर की जो विशेषता लोकप्रिय हुई है वह है यहां की ‘आतिशबाज़ी प्रतियोगिता’ जो हर साल इन महीनों में मंदिर महोत्सव के बाद होती है. इस तरह इसे ”मीनाम भारानी महोत्सव” नाम मिला. प्रतियोगिता में दो टीमें भाग लेती हैं, जो मंदिर महोत्सव में शामिल होने वाले भक्तों को अपने हुनर से ताज्जुब में डालने को तैयार रहती हैं.

ये ऐसी प्रतियोगिता थी, जिस पर ज़िला प्रशासन ने पुत्तिंगल देवी मंदिर में रोक लगा रखी थी. मंदिर में 10-15 साल पहले भी ऐसी दुर्घटना हो चुकी थी, जिसमें कम लोग घायल हुए थे.मगर मंदिर कमेटी ने प्रतियोगिता को जारी रखा. इसका बड़ा कारण यहां पटाख़ों का बड़ी मात्रा में एकत्र होना भी रहा. ऐसा कई बार हुआ था जब ये निर्धारित मात्रा से बहुत अधिक थे. सबरीमाला मंदिर मे पांच दशक पहले एक दुर्घटना में 68 लोगों की मौत के बाद उस मंदिर में आतिशबाज़ी बंद कर दी गई थी.

केरल में आठ से नौ हज़ार मंदिर हैं, जिनमें से ढाई हज़ार पर सरकार का नियंत्रण है. भक्तों को आकर्षित करने के लिए  मंदिरों को कुछ करना पड़ता है. हर कोई मनोरंजन पसंद करता है. आतिशबाज़ी इसमें एक है. कुछ मंदिर सांस्कृतिक कार्यक्रमों की आड़ में सिनेमा का नाच भी करवाते हैं.

कल्याणकारी और धार्मिक  गतिविधियां का स्थान  अब मनोरंजक गतिविधियों ने ले लिया है. यहां न गीता के उपदेश हैं, न धार्मिक मूलग्रंथ और न योग आधारित शिक्षा है. भक्तों को आकर्षित करने के लिये है, नाच, आतिशबाज़ी और प्रतियोगिता. जबकि इसके लिए कोई वैदिक नियम नहीं है.

 

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *