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दिव्यांग भिखारी और कूड़ा बीनने वाली महिला ने एक अनूठी मिसाल कायम की..

झांसी , मन में हो चाह तो आर्थिक तंगी या बदहाली किसी दूसरे जरूरतमंद की मदद में बाधा नहीं बन सकती है। मानवीय संवेदनाओं की एक ऐसी ही अनूठी मिसाल  तीन माह की बीमार बच्ची के इलाज के लिए आर्थिक योगदान के लिए आगे आये एक दिव्यांग भिखारी और एक कूड़ा बीनने वाली महिला ने उत्तर प्रदेश के झांसी में कायम की।

नगरा निवासी एक तीन माह की एक बच्ची परी दिल में छेद होने के कारण जिंदगी और मौत के बीच झूल रही है। इस बच्ची की मदद के लिए नगर के कई समाजसेवी और अन्य लोग आगे आये। उसके इलाज लायक पर्याप्त धनराशि भी एकत्र हो गयी। इस परिवार को बच्ची के इलाज के लिए दिल्ली पहुंचाने के लिए यहां शहर के ईलाइट चौराहे में बनाये गये सहायता केंद्र में सुबह सुबह सबसे पहले पहुंचने वालों में था एक ऐसा शख्स जो स्वयं अपने और अपने परिवार का पेट पालने के लिए दूसरों की मदद का मोहताज है। इस बच्ची की मदद के लिए उठायी जा रही आवाज इस दिव्यांग भिखारी के दिल तक कुछ इस तरह पहुंची कि जैसे तैसे अपने परिवार के पालन पोषण के लिए भीख मांगकर गुजारा करने वाला यह व्यक्ति परी की मदद के लिए पैसा देने सवेरे सबसे पहले सहायता केंद्र पर पहुंच गया।

इस शख्स ने समाज के उन धन्ना सेठों के मुंह पर आज मानवता का वह करारा तमाचा जड़ा जो दिन रात तिजोरियां भरकर अपने आने वाली सात पुश्तों के लिए धन एकत्र करने के जुगाड़ मे लगे रहते हैं लेकिन किसी जरूरतमंद की मदद के लिए थोडा पैसा भी नहीं दे पाते। इस व्यक्ति ने साबित कर दिया कि यदि इच्छा हो एसोच हो और दिल में मानवीय संवेदना हिलोरे मार रही हो तो नितांत अभाव में भी दूसरे जरूरतमंद की मदद की जा सकती है।

एेसा ही उदाहरण एक कूडा बीनने वाली महिला ने भी पेश किया । यह महिला जो कूड़ा बीनकर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करती है आज परी की जिंदगी बचाने के लिए अपनी तरफ से जो हो सका वह मदद लेकर सहायता केंद्र पहुंची। इन दोनों लोगों ने यह साबित कर दिया कि भले की कलयुग सही और इस काल में बुरे विचारोंए बुरी भावनाओं और लूट खसोट को प्रश्रय देने वालों का बाहुल्य सही लेकिन इस काल में भी इन जैसे लोग समाज में मौजूद हैं जिनकी वजह से मानवता और मानवीय मूल्यों आज भी अपना अस्तित्व बनाये हुए हैं।