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 प्रधानमंत्री की प्रशंसा से उत्साहित, इस जनजाति ने लिया बड़ा फैसला 

पिथौरागढ़ (उत्तराखंड), प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा से उत्साहित धारचूला की रं जनजाति सोसायटी ने अगले साल जनवरी में रं साहित्य उत्सव मनाने का फैसला किया है।

प्रधानमंत्री की प्रशंसा से उत्साहित  रं जनजाति ने लिया बड़ा फैसला

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा रविवार को अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में अपनी भाषा के संरक्षण के लिए रं जनजाति के प्रयासों की प्रशंसा किये जाने से उत्साहित धारचूला की रं जनजाति सोसायटी ने अगले साल जनवरी में रं साहित्य उत्सव मनाने का फैसला किया है।

उत्तराखंड के पूर्व मुख्य सचिव और रं समुदाय की संस्कृति को बढावा देने के लिये काम कर रहे गैर सरकारी संगठन रं कल्याण संस्था के संस्थापक सदस्य एनएस नपल्चयाल ने बताया, ‘‘हम अगले साल जनवरी में रं ल्वू लिटरेचर फेस्टिवल मनाने जा रहे हैं।’’

रं समुदाय में ल्वू का मतलब ‘भाषा’ होता है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में भारत में करीब बीस हजार लोग और नेपाल में 1,000 लोग यह भाषा बोलते हैं।

सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी नपल्चयाल ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री ने जिक्र किया है कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2019 को अन्तरराष्ट्रीय देशज भाषा वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है और रं समाज के लोगों द्वारा अपनी भाषा और लिपि को सहेजने के लिये किये जा रहे प्रयासों की सराहना की जानी चाहिए जहां 84 वर्ष से लेकर 22 वर्ष तक के लोग इस पहल में शामिल हैं।’’

रं जनजाति भारत—नेपाल सीमा के पास पिथौरागढ़ जिले के धारचूला सब डिवीजन में तीन घाटियों— दारमा, व्यास और चौंदास— में निवास करती हैं।

नपल्चयाल ने बताया कि रं भाषा के संरक्षण के लिये प्रयास करीब 40 साल पहले शुरू हुए थे जब नेपाल में रहने वाले रं समाज के एक सदस्य नंदन सिंह लाला ने भाषा की लिपि का विकास करने के लिये एक लाख रुपये का दान दिया था।

भाषा के सरंक्षण के प्रयासों में लगे समुदाय के लोगों के अनुसार, यह उनके पूर्वजों की दूरदर्शिता ही थी जिसमें उन्होंने जन्म से लेकर मृत्यु तक हर रस्म में रं भाषा के प्रयोग को अनिवार्य किया हुआ है।

रं कल्याण संस्था के सचिव राम सिंह हंयाकी ने बताया कि पिछले 20 साल से हर तीसरे साल रं उत्सव का आयोजन किया जा रहा है जिसमें प्रतिभागियों का रं भाषा बोलना अनिवार्य है।

रं भाषा के संरक्षण में लगे पूर्व आइपीएस अधिकारी मोहन सिंह बंग्याल ने बताया कि रं ल्वू को भाषा विज्ञानियों ने ‘तिब्बतन—बर्मीज भाषा समूह’ में शामिल किया है।