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गौतम बुद्ध की 2581वीं जयंती पर, जन्मस्थली पर हो रहे विविध आयोजन

सिद्धार्थ नगर, समूचे विश्व को शांति और अहिंसा का संदेश देने वाले भगवान गौतम बुद्ध की 2581वीं जयंती उनकी जन्मस्थली उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले में स्थित कपिलवस्तु में आज सादगी से मनाई जा रही है।

देश विदेश से आए बौद्ध भिक्षुओं ने शनिवार को अन्य श्रद्धालुओं के साथ कपिलवस्तु में स्थित स्तूप की परिक्रमा के बाद पूजा अर्चना की ।

कपिलवस्तु में इस मौके पर विविधि कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं जबकि रात में एक स्वयंसेवी संगठन द्वारा दीपोत्सव के कार्यक्रम का आयोजन किया गया है।

गौतम बुद्ध भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के ऐसे महापुरुषों में शामिल रहे, जिन्‍होंने पूरी मानवजाति पर छाप छोड़ी। गौतम बुद्ध की जयंती बुद्ध पुर्णिमा के दिन मनाई जाती है और उनका निर्वाण दिवस भी बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही हुआ था। यानी यही वह दिन था जब बुद्ध ने जन्म लिया, शरीर का त्याग किया था और मोक्ष प्राप्त किया।

गौतम बुद्ध संन्यासी बनने से पहले कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ थे।

लोगों के दुखों को देखकर और शांति की खोज में वे 27 वर्ष की उम्र में घर-परिवार, राजपाट आदि छोड़कर चले गए थे।

बुद्ध ने जब अपने युग की जनता को धार्मिक-सामाजिक, आध्यात्मिक एवं अन्य यज्ञादि अनुष्ठानों को लेकर अज्ञान में घिरा देखा, साधारण जनता को धर्म के नाम पर अज्ञान में पाया, नारी को अपमानित होते देखा, शुद्रों के प्रति अत्याचार होते देखे तो उनका मन जनता के लिए उद्वेलित हो उठा।

उन्होंने स्वयं प्रथम ज्ञान-प्राप्ति का व्रत लिया और वर्षों तक वनों में घूम-घूम कर तपस्या करके आत्मा को ज्ञान से आलोकित किया।

गौतम बुद्ध ने लगभग 40 वर्ष तक घूम घूम कर अपने सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार किया।

वे उन शीर्ष महात्माओं में से थे जिन्होंने अपने ही जीवन में अपने सिद्धांतों का प्रसार तेजी से होता और अपने द्वारा लगाए गए पौधे को वटवृक्ष बन कर पल्लवित होते हुए स्वयं देखा।

गौतम बुद्ध ने बहुत ही सहज वाणी और सरल भाषा में अपने विचार लोगों के सामने रखे।

अपने धर्म प्रचार में उन्होंने समाज के सभी वर्गों, अमीर गरीब, ऊंच नीच तथा स्त्री-पुरुष को समानता के आधार पर सम्मिलित किया।

गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म का प्रवर्तन किया और बौद्ध भिक्षुओं को संगठित किया।

गौतम बुद्ध का का अहिंसा एवं करुणा का सिद्धांत इतना लुभावना था कि सम्राट अशोक ने दो वर्ष बाद इससे प्रभावित होकर बौद्ध मत को स्वीकार किया और युद्धों पर रोक लगा दी।

इस प्रकार बौद्ध मत देश की सीमाएं लांघ कर विश्व के कोने-कोने तक ज्योति फैलाने लगा।

इसने भेद भावों से भरी व्यवस्था पर जोरदार प्रहार किया।