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अंतरराष्ट्रीय एजेन्सी मूडीज़ ने भारत की साख घटाई, दी ये रेटिंग

नयी दिल्ली , अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेन्सी मूडीज़ ने भारत की साख को बी ए ए 2 से घटा कर बी ए ए 3 कर दी है।

मूडीज ने भारत की स्थानीय मुद्रा वरिष्ठ बिना गारंटी वाली रेटिंग को भी बीएए2 से घटाकर बीएए3 कर दिया है। इसके साथ ही अल्पकालिक स्थानीय मुद्रा रेटिंग को भी पी-2से घटाकर पी-3 पर ला दिया गया है।

‘बीएए3’ सबसे निचली निवेश ग्रेड वाली रेटिंग है। इसके नीचे कबाड़ वाली रेटिंग ही बचती है।मूडीज ने इससे पहले 1998 में भारत की रेटिंग को कम किया था।

मूडीज का कहना है कि सुधारों की धीमी गति और नीतियों की प्रभावशीलता में रुकावट ने भारत की क्षमता के मुकाबले उसकी लंबे समय से चली आ रही धीमी वृद्धि में योगदान किया। यह स्थिति कोविड- 19 के आने से पहले ही शुरू हो चुकी थी और यह इस महामारी के बाद भी जारी रहने की संभावना है।

इसके साथ ही उसने कहा है कि लंबे समय तक कम विकास दर और वित्तीय स्थिति ख़राब बनी रहेगी और इन्हें दूर करने की नीतियों को लागू करना मुश्किल होगा।
मूडीज़ इनवेस्टर्स सर्विस द्वारा साख घटाए जाने से अंतररष्ट्रीय स्तर पर भारत की स्थिति पहले से खराब मानी जायेगी और इसको ऋण देना या यहां निवेश करने को पहले की तुलना में अधिक जोखिम भरा हो जाएगा।

मूडीज़ ने कहा है कि पहले से ही आर्थिक सुधार लागू नहीं होने और सरकार की नीतियों की वजह से विकास दर बहुत ही धीमी रही है। इसके साथ ही सकल घरेलू उत्पाद ( जीडीपी) वृद्धि दर घटकर 4.2 प्रतिशत पर आ गई है।

इसके पहले मूडीज़ ने कहा था कि इस साल भारत के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर घट कर 0.2 प्रतिशत हो सकती है। इसकी वजह कोरोना के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाला बुरा प्रभाव है।

मूडीज़ ने मार्च महीने मे भारत की जीडीपी वृद्धि दर 2.5 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया था। मूडीज़ के पहले भी कई रेटिंग एजेन्सियों और प्रबंध सलाहकार कंपनियों ने कहा था कि भारत की विकास दर बुरी तरह गिर सकती है।

मूडीज ने इससे पहले नवंबर 2017 में 13 साल के अंतराल के बाद भारत की सावरेन क्रेडिट रेटिंग को एक पायदान चढ़ाकर बीएए2 किया था। एजेंसी ने कहा कि नवंबर 2017 में भारत की रेटिंग को एक पायदान बढ़ाना इस उम्मीद पर अधारित था कि महवत्वपूर्ण सुधारों का प्रभावी क्रियानवरून किया जायेगा और इससे अर्थव्यवस्था, संस्थानों और वित्तीय मजबूती में लगातार सुधार आयेगा। तब से लेकर इन सुधारों का क्रियान्वयन कमजोर रहा और इनसे बड़ा सुधार नहीं दिखाई दिया. इस प्रकार नीतियों का प्रभाव सीमित रहने के संकेत मिलते हैं।