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जानिये, क्या है महाभियोग, क्या है इसका इतिहास..?

नई दिल्ली,  देश के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ जल्द ही संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है। देश के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग मसौदा प्रस्ताव पर कई पार्टियों ने हस्ताक्षर किए हैं। जस्टिस मिश्रा ने 27 अगस्त, 2017 को पूर्व मुख्य न्यायाधीश जे एस खेहर के सेवानिवृत्ति के बाद भारत के 45वें मुख्य न्यायाधीश बने। उनका कार्यकाल 2 अक्टूबर, 2018 को समाप्त हो रहा है।

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अगर विपक्षी पार्टियां जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग लाती है तो देश के न्यायिक इतिहास में वो तीसरे जज होंगे जिनके खिलाफ महाभियोग लाया जाएगा। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस वी रामास्वामी पर साल 1993 में महाभियोग लाया गया था लेकिन यह प्रस्ताव लोकसभा में ही गिर गया था। इसके बाद कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस सौमित्र सेन को महाभियोग का सामना करना पड़ा था। उन पर साल 2011 में महाभियोग लाया गया था लेकिन उन्होंने लोकसभा में इसका सामना करने से पहले ही पद से इस्तीफा दे दिया था।

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भारत के संविधान में न्यायधीशों पर महाभियोग का उल्लेख अनुच्छेद 124(4) में मिलता है। इसके तहत सुप्रीमकोर्ट या हाईकोर्ट के किसी न्यायाधीश पर साबित कदाचार या अक्षमता के लिए महाभियोग का प्रस्ताव लाया जा सकता है। महाभियोग की कार्यवाही संसद के सदनों में ही चलती है। जिस सदन में यह प्रस्ताव रखा जाता है वह इसे जांच के लिए दूसरे सदन को भेज देता ह

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सदन में न्यायाधीशों पर लगे आरोपों की जांच होती है। इसके नतीजे बहुमत से पारित कर दूसरे सदन को फैसले के लिए भेज दिए जाते हैं। इस प्रस्ताव पर फिर मतदान होता है और दो तिहाई मतों से मंजूरी के बाद फैसला तय किया जाता है। यह तय होता है कि अमुक न्यायाधीश पद पर बना रहेगा या उसे हटाया जाएगा।  न्यायाधीशों  के खिलाफ महाभियोग के लिए किसी भी शिकायत पर लोकसभा के 100 सांसदों या रायसभा के 50 सांसदों की स्वीकृति जरूरी है।

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