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सिर पर मैला ढोने की प्रथा देश मे अभी भी जारी, संसदीय समिति ने पेश की रिपोर्ट

नयी दिल्ली,  संसद की एक समिति ने मैला ढोने वालों के पुनर्वास संबन्धी योजना का अपेक्षित परिणाम नहीं मिलने पर सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की खिंचाई करते हुए कहा है कि मंत्रालय इस मामले को गंभीरता से ले और इस कार्य में लगे अधिक से अधिक लोगों की पहचान कर उनका पुनर्वास करे।

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सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय से संबंधित स्थायी समिति ने यह भी अनुशंसा की है कि ‘मैनुअल स्केवेंजरों के पुनर्वास हेतु स्व-रोजगार योजना’ का बजट आवंटन बढ़ाया जाए। समिति की रिपोर्ट बीते गुरुवार को लोकसभा में पेश की गई।

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इस रिपोर्ट में कहा गया है, “जनवरी, 2017 तक 12,737 मैनुअल स्केवेंजरों की पहचान की गई तथा इस वर्ष 17 जनवरी तक चिन्हित मैनुअल स्केवेंजरों की संख्या 13,639 थी। इसका मतलब यह हुआ कि वर्ष 2017-18 में मात्र 902 मैनुअल स्केवेंजरों की पहचान की गई । समिति इसको लेकर अप्रसन्नता व्यक्त करती है।” भाजपा के रमेश बैस की अध्यक्षता वाली इस समिति ने कहा, “मैनुअल स्केवेंजर अब भी मौजूद हैं इसलिए समिति यह कहती है कि विभाग (सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता) इस मामले को गंभीरता से ले और इसे सर्वाधिक वरीयता दे।” उसने कहा कि मंत्रालय अधिक से अधिक मैनुअल स्केवेंजर की पहचान करे और उनका पुनर्वास सुनिश्चित करे।

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समिति ने मैनुअल स्केवेंजर के बच्चों के लिए चल रही प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के बजट आवंटन को लेकर भी चिंता प्रकट की है और राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त एवं विकास निगम ( एनएसकेएफडीसी) की खिंचाई की है। उसने कहा, “एनएसकेएफडीसी एक नोडल एजेंसी है और योजना का उसके द्वारा निष्पादन संतोषजनक नहीं है। ” समिति ने कहा कि इस योजना के लिए पिछले वित्त वर्ष में 44.83 करोड़ रुपये का आवंटन हुआ था, लेकिन अगले वित्त वर्ष में इसे घटाकर 30 करोड़ रुपये कर दिया गया।

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रिपोर्ट के मुताबिक समिति ने वित्त मंत्रालय से आग्रह किया है कि वह मैनुअल एस्केवेंजर पुनर्वास योजना और उनके बच्चों के लिए प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के लिए आवंटन बढ़ाए। उसने एनएसकेएफडीसी के कामकाज के शीघ्र मूल्यांकन की भी सिफारिश की है।

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