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क्या ऑनलाइन प्राथमिकी दर्ज की जा सकती है ?

नयी दिल्ली,   क्या लोगों को अपने घर से ऑनलाइन प्राथमिकी या ई-एफआईआर दर्ज कराने की अनुमति दी जा सकती है। यह सवाल गृह मंत्रालय ने विधि आयोग से पूछा है।

विधि आयोग को मुद्दे पर विचार करने के दौरान कई सुझाव मिले हैं। इन सुझावों में कहा गया है कि अगर दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में संशोधन करके लोगों को ऑनलाइन प्राथमिकी दर्ज कराने की अनुमति दी जाती है तो इसका यह परिणाम हो सकता है कि कुछ लोग दूसरों की छवि धूमिल करने के लिये इस सुविधा का इस्तेमाल कर सकते हैं। विधि आयोग के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, ‘‘हां, लोग प्राथमिकी दर्ज कराने के लिये थाने जाना मुश्किल पाते हैं। लोगों के लिये घर से प्राथमिकी दर्ज कराना काफी आसान हो जाएगा। हालांकि, ज्यादातर लोगों को पुलिस के समक्ष झूठ बोलने में कठिनाई होती है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘पुलिसकर्मी शिकायतकर्ता के आचरण को समझते हैं। हालांकि, कोई भी ऑनलाइन सुविधा का इस्तेमाल दूसरे की छवि को नुकसान पहुंचाने में कर सकता है। यही अब तक हमें समझ में आया है। हालांकि, हमने अवधारणा को अभी समझना शुरू किया है। इसलिये यह कोई अंतिम बात नहीं है।’’

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार साल 2016 में कुल 48 लाख 31 हजार 515 संज्ञेय अपराध हुए। इसमें से 29 लाख 75 हजार 711 अपराध भारतीय दंड संहिता के तहत तथा 18 लाख 55 हजार 804 विशेष एवं स्थानीय कानूनों के तहत अपराध हुए। 2015 की तुलना में इसमें 2.6 फीसदी की वृद्धि हुई। उस वर्ष कुल 47 लाख 10 हजार 676 संज्ञेय अपराध के मामले हुए।

 पूर्व विधि सचिव ने कहा कि अगर विधि आयोग सिफारिश करता है तो ऑनलाइन प्राथमिकी दर्ज की जा सकती है। उसे कानूनी ढांचा मुहैया कराना होगा कि कैसे इसपर आगे बढ़ें। उन्होंने कहा, ‘‘कानून के अनुसार प्राथमिकी संज्ञेय अपराध के लिये अनिवार्य है, लेकिन उसे सुझाव देना होगा कि इसके दुरुपयोग को कैसे रोका जाए।’’ आयोग ने इस मुद्दे को समझने के लिये पहले ही विभिन्न राज्यों के पुलिस अधिकारियों से संवाद किया है।

लोगों को ऑनलाइन प्राथमिकी दर्ज कराने की अनुमति दी जानी चाहिये। क्यों कि पुलिस बल लोगों को ई-मेल से प्राथमिकी दर्ज कराने को कहते हैं। हालांकि, वे सिर्फ शिकायत को स्वीकार करते हैं और प्राथमिकी दर्ज नहीं करते हैं। कोई प्राथमिकी संख्या नहीं दी जाती है। यह काफी बाद में प्राथमिकी बनता है। ऑनलाइन प्राथमिकी दर्ज करने की सुविधा प्राथमिकी पर लोगों को अधिक नियंत्रण देगा। तब पुलिस कुछ खास अपराधों पर ना नहीं कह सकेगी।