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UGC का आरक्षण विरोधी फरमान, विश्वविद्यालयों मे अब केवल नाम का आरक्षण

देश में अच्छे दिन, 15 लाख, 2 करोड़ रोजगार…… इत्यादि बेहद उम्मीदों से भरे हुए नारों के दम पर भारतीय जनता पार्टी केंद्रीय हुकूमत पर काबिज होती है और इस तरह जनता पिछले 10 साल के निष्क्रिय सरकार को संसद से बेदखल कर देती है। भारत देश की करीब 65 फीसदी आबादी युवा है। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हमेशा युवाओं के उम्मीदों को खरे उतरने की वकालत करते रहते हैं लेकिन 05 मार्च 2019 को जारी UGC का सर्कुलर भाजपा की नीयत का पोल खोलने वाला है..

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 UGC का आरक्षण विरोधी फरमान
एनडीए सरकार द्वारा UGC को आगे करके 05 मार्च 2018 को UGC द्वारा देश के सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों, राज्य विश्वविद्यालयों तथा अनुदान पा रहे अन्य सभी विश्वविद्यालयों के रजिस्ट्रार के नाम एक फरमान जारी किया। इस फरमान के तहत देश के सभी विश्वविद्यालयों तथा कॉलेजों में शिक्षकों की भर्ती पूर्ण संख्या के अनुसार न होकर अब विभागवार रोस्टर प्रणाली के जरिए होगी। अब जरा गणित समझिए-
(A)अगर किसी विभाग में 4 सीट निकलती है तो 1 सीट ओबीसी कोटे में जाएगा।
(B) अगर 10 सीट की वैकेंसी निकलती है तो 1 ओबीसी और 1 सीट एससी को मिलेगा।
(C) अगर 14 सीट निकलती है तो 1 सीट ओबीसी, 1 सीट एससी और 1 सीट एसटी के खाते में जाएगा।
मतलब यह हुआ कि अगर 14 सीट से कम की वैकेंसी निकलती है तो नियमवार आरक्षण को समाप्त समझिए।

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 इस सर्कुलर के पीछे साजिश क्या है?
वर्तमान में देश के सभी विश्वविद्यालयों तथा कॉलेजों में विभागों की जमीनी सच्चाई यह है कि अभी देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों तथा कॉलेजों में विभागवार औसतन वैकेंसी 2- 4 की संख्या में निकलती हैं। अर्थात अगर निष्कर्ष निकालें तो आरक्षण का 49.50% मानक तो बना रहेगा लेकिन व्यवहार में आरक्षण का फायदा अब इक्का दुक्का मिलेगा बस। दूसरे शब्दों में कहें तो आरक्षण अब सवर्ण कैटेगरी के लोगों को दे दिया गया है। करीब 06 महीने पहले भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने चेतावनी दिया था कि “आरक्षण तो रहेगा लेकिन हम आरक्षण को इतना कमजोर कर देंगे कि इसका होना न होना बराबर है।” आज भाजपा ने इस चेतावनी को सच कर ही दिया। साजिश को समझने की जरूरत है।

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 देश के सभी बहुजनों, बहुजन नेताओं, छात्रों तथा इंसाफ पसंद लोगों, संगठनों व राजनीतिक दलों से अपील है कि वह भाजपा की इस निरंकुश फरमान का विरोध कर वापस कराएं वर्ना वह दिन दूर नहीं जब यह रोस्टर प्रणाली सभी प्रकार की नौकरियों में लागू कर दिया जाएगा, जब संविधान भी इसी तरह पूर्णतः खत्म कर दिया जाएगा और आप देखते रहेंगे। अभी समय है। जितना जल्दी जाग सको जग जाओ और कमर कसते हुए संगठनबद्ध होकर संघर्ष करें।

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 सरकार और छात्रों/युवाओं का प्रतिरोध
अगर हम EVM, VVPAT के विवादों पर न जाएं तो गौरतलब है कि पिछले 04 सालों के चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन बहुत ही अच्छा रहा है। यानी कि इस हिसाब से सबकुछ ठीक चल रहा होगा लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है। जिस डेमोक्रेसी, डेमोग्राफी एंड डेवलपेमेंट (3D) की बात हमारे प्रधानमंत्री साहब कर रहे हैं उनमें सबसे महत्वपूर्ण बात हमारे देश के युवा ही हैं। लेकिन बेहद अफसोस की बात है कि एनडीए सरकार में युवाओं के ऊपर सबसे ज्यादा हमले बढ़े हुए हैं।

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 कभी आईआईटी मद्रास के ‘आम्बेडकर पेरियार स्टडी सर्कल’ से जुड़े छात्रों पर हमला होता है तो कभी हैदराबाद विश्वविद्यालय के ‘आम्बेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन’ से जुड़े छात्र रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या की जाती है। कभी एफटीआईआई पुणे के छात्रों का दमन किया जाता है तो कभी पंजाब विश्विद्यालय के आंदोलनरत छात्रों पर विश्विद्यालय प्रशासन द्वारा बर्बरतापूर्ण लाठीचार्ज किया जाता है। जेएनयू के छात्र नजीब को सरकार अभी तक ढूंढ नहीं सकी है। एमएनएनआईटी, इलाहाबाद के परमात्मा यादव कॉलेज प्रशासन से तंग आकर सुसाइड करने पर मजबूर होते हैं। BHU में छात्राओं के साथ छेड़खानी की जाती है तो इसके विरोध में खड़ी छात्राओं के चरित्र पर सवाल खड़ा किया जाता है। साहब क्या यही विकास है? और अब दलित, पिछड़े, आदिवासियों की नौकरी हड़पने का षणयंत्र..?

– सूरज कुमार बौद्ध, राष्ट्रीय महासचिव,
भारतीय मूलनिवासी संगठन (BMS)