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सामाजिक असमानता दूर करने के लिये, जाति जनगणना के आंकडे सार्वजनिक करे मोदी सरकार- अखिलेश यादव

लखनऊ, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एकबार फिर जातिगत जनगणना के आंकडे सार्वजनिक करने की मोदी सरकार से मांग की है। यह बात अखिलेश यादव ने मिलने आये अखिल भारतीय कूर्मि क्षत्रिय महासभा के प्रतिनिधि मंडल से मुलाकात के दौरान कही।

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अखिलेश यादव ने कहा कि सामाजिक व्यवस्था में अवसर अधिकार और सम्मान सही तरीके से तभी मिल सकता है जब आबादी के हिसाब से जातिगत जनगणना के आंकडे सामने आ जायेगें। इससे पहले भी अखिलेश यादव देश से सामाजिक, आर्थिक असमानता दूर करने के लिये मोदी सरकार से जातीय जनगणना के आंकडे सार्वजनिक कर आबादी के अनुपात मे हिस्सेदारी देने की बात कर चुकें हैं।

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पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जातिगत जनगणना के आंकडे जानने का सरल और बिना खर्च का तरीका भी सुझाया। उन्होने आधार कार्ड का उपयोग करने की सलाह देते हुये कहा कि आधार से जाति को जोड़ देना चाहिए। जिससे सबकों अपनी आबादी की संख्या की जानकारी हो सके और उनको हक मिल सके। जाति जनगणना की सही तस्वीर समतामूलक समाज की स्थापना में मददगार साबित होगी।

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  जातिगत जनगणना के आंकडे सार्वजनिक न  करने को लेकर मोदी सरकार पर कई गंभीर सवाल उठतें हैं।  पहला कि जातिगत जनगणना पर हजारों करोड़ रूपये खर्च करने के बाद भी केंद्र सरकार क्यों आंकड़ों को दबाये बैठी है और उन्हे सार्वजनिक नही करना चाहती है? दूसरा जब बीजेपी प्रधानमंत्री की जाति बता सकती है तो जाति की गिनती क्यों नहीं। तीसरा, इस सर्वे में अनुसूचित जाति जनजाति की संख्या बता दी तो बाकियों की क्यों नहीं बताई गई?

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दरअसल, 1931 के बाद भले ही जाति की गिनती नहीं हुई लेकिन कहा गया कि 1980 के मंडल कमीशन से मोटा मोटी मालूम चल गया था कि देश में 54 प्रतिशत ओबीसी हैं, 30 प्रतिशत के आस पास अनुसूचित जाति और जनजाति और 16 से 18 प्रतिशत अपर कास्ट। अब अगर 2011 की इस जनगणना के आंकड़ों मे अगर अपर कास्ट का अनुपात दस प्रतिशत से भी कम हुआ तो प्रतिनिधित्व के सवाल को लेकर भारतीय राजनीति में फिर से भूचाल आ सकता है। क्योंकि सरकारी नौकरियों में भागीदारी के शरद यादव के एक प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय के तत्कालीन राज्यमंत्री वी नारायणासामी ने संसद में निम्न विवरण दिया था-

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ऊंची जाति: 76.8%

ओबीसी:   6.9 %

अनुसूचित जाति:  11.5 %

अनुसूचित जनजाति: 4.8 %

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इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि मात्र 16 प्रतिशत आबादी वाली अगड़ी जातियां , देश की 76.8 प्रतिशत  नौकरियों पर कब्जा जमायें हैं, जबकि  54 प्रतिशत आबादी वाली पिछड़ी जातियों की सरकारी नौकरियों मे हिस्सेदारी मात्र 6.9 प्रतिशत है। ये आंकड़े मात्र एक झलक हैं जो बताते हैं कि देश में सर्वाधिक संख्या वाली पिछड़ी जातियां, अगड़ी जातियों से सरकारी संसाधनों मे हिस्सेदारी मे बहुत ज्यादा पीछे चल रही हैं और उनका हिस्सा वास्तव मे पिछड़ों मे यादव, कुर्मी या दलितों मे जाटव और आदिवासियों मे मीणा नही हड़प रहें हैं बल्कि चंद अगड़ी जातियां हड़प रहीं हैं ? इसीलिये जातिगत जनगणना के आंकड़े देश की सामाजिक -आर्थिक असमानता को दूर करने का बहुत बड़ा हथियार साबित हो सकतें हैं।

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