कोरोना वायरस को लेकर लोगों में अजीब डर और बेचैनी, आईसीएमआर ने बताई सच्चाई
April 7, 2020
नयी दिल्ली, भारतीय चिकित्सा शोध परिषद (आईसीएमआर) के महामारी रोग विभाग के प्रमुख डॉ रमन आर गंगाखेड़कर ने इन अफवाहों को पूरी तरह खारिज कर दिया है कि अखबार से कोराेना विषाणु के संक्रमण का प्रसार होता है।
श्री गंगाखेड़कर ने बताया कि कोरोना वायरस को लेकर इन दिनों लोगों में अजीब तरह का डर और बैचेनी देखी जा रही है और हर कोई दूसरे व्यक्ति को शक की नजरों से देख रहा है। लोगों ने इस गलतफहमी के कारण अखबार लेने बंद कर दिए हैं जबकि सच्चाई यह है कि वह वायरस कागज पर अधिक समय तक नहीं टिक पाएगा।
उन्होंने स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि विषाणु की जीवन अवधि को देखने के लिए प्रयोगशालाओं में एक ड्रम के भीतर कागज लगाकर बाहर जैसा माहौल बनाकर विषाणुओं के ड्रापलेट्स को रखकर यह सुनिश्चित किया जाता है कि यह विषाणु कितने समय तक जिंदा रहेगा लेकिन प्रयोगशालाओं और बाहरी वातावरण में काफी अंतर हाेता है।
अत: लोगों का यह डर बेबुनियाद है कि यह विषाणु अखबारी कागज पर रहता है अथवा किसी दूसरी सतह पर पाया जाता है। उन्होंने कहा कि वातावरण में हर जगह विषाणु और जीवाणु रहते हैं और हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली उन्हें मारती रहती है। इस बीमारी से बचने में व्यक्तिगत साफ-सफाई और लगातार हाथों को साफ रखने से काफी मदद मिलती है।
श्री गंगाखेड़कर ने विदेशों में चिड़ियाघरों में बाघों में कोरोना संक्रमण पाए जाने और इसके इंसानों में फैलने के चक्र पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा कि अगर यह विषाणु इन जीवों में पाया भी गया है तो इससे घबराने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि ऐसे जीव तो खुद ही आइसोलेशन में हैं और उनका इंसानों से कोई सीधा संपर्क भी नहीं होता है और न ही उनसे जुड़े उत्पादों का मानव समुदाय कोई इस्तेमाल करता है तो इससे घबराने की कोई जरूरत नहीं है।
कुत्ते और बिल्लियों में काेरोना संक्रमण को पूरी तरह खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि यह विषाणु सिर्फ इंसानोें को ही निशाना बनाता है। कुत्ते-बिल्लियों में यह फैलता तो पूरी दुुनिया में अब तक कुत्ते और बिल्लियाेंं में यह फैल चुका होता।
उन्होंने इसे और स्पष्ट करते हुए कहा कि कुछ विषाणु और जीवाणु अपने अस्तित्व के लिए कुछ खास जीवों पर ही निर्भर रहते हैं जैसे एड्स का विषाणु कुत्तों या चूहाेंं में जीवित नहीं रह सकता है और सिर्फ मानवों में ही पाया जाता है अत: लोगों को अपने मन से इस तरह के वहम को निकाल देने चाहिए नहीं तो लोगों का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो जाएगा।
कोविड मरीजों पर हाइड्रोक्सीक्लोराेक्वीन दवा के इस्तेमाल और आम लोगों के इसके लिए जाने पर उन्होंने कहा कि यह दवा सिर्फ उन्हीं मरीजों को दी गई है जो कोराेना वायरस से संक्रमित हैं अथवा जो लोग उनकी तीमारदारी कर रहे हैं या जो चिकित्सक उनका इलाज कर रहे हैं लेकिन मरीजों को भी यह दवा देते समय कई चीजों को देखा जाता है और अगर आम आदमी इसे खुद ही लेगा तो इसके कईं घातक दुष्प्रभाव हो सकते हैं यह दवा को अभी तक ‘प्रोफाइलेक्सिस’ आधार पर दी जा रही है।
आस्ट्रेलिया में कोरोना वायरस के खात्मे को लेकर आइवरमैसिटीन’ दवा को लेकर किए गए वैज्ञानिकों के दावे पर उन्होंने कहा कि यह दवा भारत में परजीवी संक्रमण जैसे पेट में पाए जाने वाले कृमियों एस्कैरिस, त्वचा पर पाई जाने वाली परजीवियों लाइस और स्कैबिज में दी जाती है लेकिन इसे देने से पहले मरीज की अन्य स्थितियों को भी देखा जाता है। उन्होेंने बताया कि आस्ट्रेलिया में वह परीक्षण प्रयोगशालाओं में किया गया है और अभी तक उसकी कोई प्रामाणिकता किसी भी जीव पर साबित नहीं हुई है। इस दवा के भी गंभीर घातक दुष्प्रभाव हैं और आम आदमी को अकारण इसे लेने से बचना चाहिए।