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जानिये, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मीडिया से सीधे बात करने मे क्यों लगता है डर ? 

नई दिल्ली,  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कार्यकाल पूरा होने में केवल 14 महीने का वक्त बाकी रह गया है, लेकिन उन्हें खुद को और अपनी सरकार को स्वतंत्र प्रेस के प्रति जवाबदेह बनाने की जरूरत आज तक महसूस नहीं हुई है। क्या आपको पता है कि नरेंद्र मोदी लोकतांत्रिक भारत के इतिहास में पहले प्रधानमंत्री हैं, जिन्होने एक भी प्रेस कांफ्रेंस नही की है।

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तो क्या सचमुच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मीडिया से बात करने मे डर लगता है ? लेकिन यह भी पूरा सच नही है। अभी news 18 tv पर प्रधानमंत्री का इंटरव्यू आया। कुछ दिन पूर्व ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल का पहला इंटरव्यू जी न्यूज को दिया। उनका इंटरव्यू जी न्यूज के प्रमुख  एंकर सुधीर चौधरी ने लिया। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टाइम्‍स नाऊ के एडिटर इन चीफ अरनब गोस्‍वामी को इंटरव्यू दिया है। मोदी ने टाइम्‍स नाऊ को जो इंटरव्यू दिया है वो 2014 में उनके सत्‍ता में आने के बाद किसी भारतीय न्‍यूज चैनल को दिया पहला इंटरव्यू है। चार साल मे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मीडिया से सीधा संवाद मात्र इतना ही है।

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 शुरू से मीडिया प्रेमी रहे नरेंद्र मोदी के केन्द्र की सत्ता में आने से अच्छे दिन आने की उम्मीदें सबसे ज्यादा मीडिया ने लगायीं। क्योंकि मोदी जनता के साथ-साथ मीडिया के भी अपार समर्थन से केन्द्र की सत्ता में आये। पर नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही अचानक मीडिया से दूरी बनानी शुरू कर दी। सरकारी खर्च घटाने के नाम पर स्वयं प्रधानमंत्री कार्यालय ने विदेश दौरों में मीडिया को ले जाने की परंपरा को दरकिनार कर दिया। केन्द्रीय मंत्रियों को भी मीडिया को अपने साथ दौरों में अनावश्यक न ले जाने की हिदायतें दी गयीं।

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सूचना का अधिकार भी मोदी सरकार मे उतना प्रभावी नही रहा है। सारी शक्तियों का प्रधानमंत्री कार्यालय में केंद्रीकरण कर देनेवाली मोदी सरकार का आरटीआई आवेदनों का जवाब देने के मामले में ट्रैक रिकॉर्ड बेहद खराब है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने बिना कारण बताए 80 प्रतिशत आरटीआई आवेदनों को खारिज कर दिया है।

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 इसीलिये आज सबसे ज्यादा हताश मीडिया ही है। आज मीडिया के मन में आने लगा है कि प्रधानमंत्री से या सरकार से जितना संवाद पहले होता था, अब नहीं होता है। जितनी सूचनायें और जिस तरह की सूचनायें प्रेस को मिलनी चाहिए, उतनी नहीं मिल पा रही है। सच यह है कि सरकार वैसी सूचनाओं को बाहर आने से रोकने के लिए धमकियों का सहारा ले रही है, जिन्हें वह बाहर नहीं आने देना चाहती।

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आज, हमारे सामने एक ऐसा प्रधानमंत्री है, जो खुद को किसी भी सांस्थानिक जांच या पूंछताछ से बाहर मानता है, फिर चाहे यह  जांच मीडिया के द्वारा हो या जनता की तरफ से की जा रही हो। अब बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मीडिया से क्यों दूरी बना रहें हैं। मीडिया ने मोदी सरकार की इस कमजोरी को पकड़ने की कोशिश की है।

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 दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकार मे आने से पूर्व जिस तरह से अपने को पेश किया और जनता से जो वादे किये वह आज तक साकार होते नही दिख रहें हैं। साथ ही कुछ खास उद्योगपतियों से मोदी सरकार की सांठगांठ पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। इसलिये सरकार असलियत को नही दिखाना चाहती है। सहारा की डायरी मे मोदी के नाम के आगे 40 CR और राफेल डील के सौदों पर सवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिये बेहद तकलीफ देह साबित हो सकतें हैं।  अमित शाह के बेटे का पचास हजार रूपया एक साल मे 80 करोड़ होने के फार्मूले को भी मीडिया जरूर जानना चाहेगा। नीरव मोदी, मेहुल कुमार से लेकर ललित मोदी और विजय माल्या जैसे पुराने जख्म फिर से हरा कर सकता है।  जिससे हो सकता है दोबारा मोदी के करन थापर का इंटरव्यू छोड़कर भाग जाने वाली स्थिति न बन जाये।

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मोदी सरकार आने के बाद से ही मीडिया की साख पर भी लगातार सवाल खड़े हो रहें हैं। लोगों मे एक आम धारणा बनती जा रही है कि भारत के प्रधानमंत्री बनने के बाद ज्यादातर मीडिया, मोदी का गुलाम बन चुका है और जो सच्चा और ईमानदार मीडिया इस देश में बचा है मोदी जी उसके सामने जाने से डरते हैं। अब मोदी सरकार की लगभग चलाचली की बेला आ चुकी है। मीडिया अभी तक खामोश रहा है, पर अब नही रहेगा। उसे मौका मिला तो वह जरूर कड़वे सवाल करेगा। यही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मीडिया से सीधे संवाद करने मे सबसे बड़ा डर है।

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