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एसिडिटी है तो न करें देर

जिन रोगों की सबसे अधिक अनदेखी की जाती है, उनमें से एक है एसिडिटी। अकसर इस समस्या से राहत पाने के लिए हम स्वयं ही डॉक्टर बन जाते हैं। एसिडिटी न सिर्फ एक बड़ी समस्या है, बल्कि कई रोगों का संकेत भी है। उपचार में लापरवाही न बरतें, बता रही हैं सौदामिनी पांडेय बदलती जीवनशैली और बढ़ती सहूलियतों के बीच बैठे-बैठे काम करने की प्रवृत्ति के कारण एसिडिटी बहुत आम समस्या हो गई है। एसिडिटी के मूल में जाएं तो यह समस्या खाना पचाने की प्रक्रिया से जुड़ी है। दरअसल खाना पचाने के लिए पेट हाइड्रोक्लोरिक एसिड का उत्सर्जन करता है। सामान्य तौर पर यह एसिड पेट में ही रहता है और भोजन नली के संपर्क में नहीं आता। लेकिन कई बार विकृति आने पर भोजन नली अपने आप खुल जाती है और एसिड भोजन नली में पहुंच जाता है। इससे डिसपेप्सिया, सीने में जलन और पेट में जलन जैसी समस्याएं हो जाती हैं। भोजन नली में बार-बार एसिड के पहुंचने पर आहार नली में सूजन और घाव होने का डर रहता है, जिसे पेप्टिक अल्सर भी कहते हैं। एसिडिटी के मरीजों में कब्ज और अपच की समस्या भी देखने को मिलती है।

एसिडिटी के प्रमुख लक्षण हैं – पेट में जलन – गले में जलन व बेचैनी – तेज आवाज के साथ डकार आना – उल्टी जैसा महसूस होना और खट्टी डकारें आना – अत्यधिक गैस पास होना – गैस जमा होने से पेट फूल जाना – जीभ पर सफेद परत जमा हो जाना – सांस में बदबू आना – मल में से तेज बदबू आना – दस्त लगना और कब्ज होना सामान्य एसिडिटी में एंटासिड से आराम मिल जाता है, लेकिन अगर एसिडिटी लंबे वक्त से बनी हुई है तो यह बीमारी का रूप ले सकती है। ऐसे में इसके सही इलाज के साथ खान-पान में सावधानी बरतना बेहद जरूरी है।

यह ध्यान देने की जरूरत है कि कहीं एसिडिटी को साधारण समस्या समझ कर इसमें लापरवाही न की जाए। आइए जानें एसिडिटी के कारण होने वाली कुछ बीमारियों के बारे में- जीईआरडी: इसमें पेट और भोजन नली को जोड़ने वाला हिस्सा प्रभावित होता है। भोजन नली बार-बार खुल जाने से मरीज को काफी तकलीफ होती है। इसमें छाती में जलन, खाना पेट में रुक-रुक के जाना, खाया हुआ वापस आना, आवाज भारी होना, सांस फूलना, लंबे समय से सूखी खांसी जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। कुछेक मामलों में यह अस्थमा और बैरट्स भोजन नली के कैंसर से भी जुड़ा होता है। ऐसे होती है जांच

1. मरीज से इस समस्या के इतिहास के बारे में जानकारी ली जाती है। एसिड रीफ्लक्स यानी एसिड के भोजन नली में प्रवेश करने की समस्या कब से है, यह पूछ कर समस्या की गंभीरता के बारे में जाना जाता है।

2. एंडोस्कोपी के जरिए बैरट्स ईसोफेगस यानी भोजन नली की अंदरूनी जांच की जाती है। बैरट्स की कोशिकाएं एंडोस्कोपी में सामान्य ईसोफेगस की र्लाइंनग से अलग नजर आती हैं।

3. रिफ्लक्स जांच के लिए पीएच मेट्री टैस्ट किए जाते हैं। जिन मरीजों में समस्या बहुत ज्यादा बढ़ जाती है, उनकी स्थिति की 6 महीने से लेकर एक साल तक विशेष निगरानी की जाती है, ताकि कैंसर की आशंका हो तो समय रहते इलाज किया जा सके।

ऐसे बचेंः जीवनशैली में बदलाव लाकर इस समस्या से निजात पाई जा सकती है। इस बीमारी में एक बार में ज्यादा खाना, ज्यादा वसायुक्त खाना, अत्यधिक खट्टा खाना, ज्यादा मसालेदार या गरिष्ठ खाना, सौंफ, इलायची जैसे मसाले आवश्यकता से अधिक लेना नुकसानदेह साबित होता है। साथ ही पेट पर जोर डालने वाले व्यायाम से भी बचने की सलाह दी जाती है।

गंभीर बीमारी है बैरट्स ईसोफेगस: जीईआरडी की बीमारी गंभीर रूप लेने पर बैरट्स ईसोफेगस में बदल सकती है। इसमें ईसोफेगस की सतह की कोशिकाएं पेट की सतह की कोशिकाओं जैसी हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में लंबे समय तक एसिडिटी रहने और डॉक्टरी जांच न कराए जाने की स्थिति में स्क्वेमस कोशिकाएं पॉल्युमिनस कोशिकाओं में तब्दील हो सकती हैं। इस कारण बैरट्स हिलियम बनने से कैंसर की आशंका बढ़ जाती है। इसमें क्रॉनिक कफ या दमा की समस्या भी देखने को मिलती है।

उपचारः इलाज के लिए रेडियो फ्रीक्वेंसी एबलेशन थेरेपी, फोटोडायनेमिक थेरेपी, क्रायोथेरेपी, ईएमआर थेरेपी और ईएसडी थेरेपी अपनाई जाती हैं। स्थिति गंभीर होने पर कन्वेंशनल सर्जरी या ईसोफेनिक सर्जरी की जाती है।

कैसे बचेंः इस बीमारी में मसाले कम लेने, मोटापा नियंत्रित करने और देर से भोजन न करने की सलाह दी जाती है। इस समस्या में प्रोटोन पंप इनहिबिटर और एंटासिड ये दो दवाएं प्रमुखता से दी जाती हैं।

हायटस हर्निया: इस समस्या में पेट सीने से चिपक जाता है। इस कारण मरीज में रीफ्लक्स की प्रक्रिया बढ़ जाती है। इस समस्या की शुरुआत पेट या गुदा में मामूली दर्द से हो सकती है। मल निकासी के दौरान दर्द और पेट में खिंचाव महसूस होना हर्निया का लक्षण हो सकता है। अगर पेट, पेड़ू या गुदा में उभार महसूस हो तो डॉक्टर से परामर्श अवश्य लें।

कैसे बचें: इसमें पेट पर जोर डालने वाले व्यायाम न करें। वजन नियंत्रित रखें। इस बीमारी में वही दवाएं दी जाती हैं, जो सामान्य तौर पर एसिडिटी को ठीक करने के लिए दी जाती हैं। यह समस्या सर्जरी से ही ठीक होती है, जिसे लेप्रोस्कोपिक फंडोफ्लाइकेशन कहा जाता है।

जांच की प्रक्रियाः

1. बेरियम मील स्वॉलो-मरीज को बेरियम डाई का सेवन करा कर उसका एक्सरे किया जाता है।

2. अपर जीआई एंडोस्कोपी की जाती है।

पेप्टिक अल्सर: यह बीमारी 5-10 फीसदी लोगों में देखने को मिलती है। इसमें छोटी आंत में घाव(अल्सर) हो जाते हैं। यह बीमारी मुख्य रूप से हेलिकोबैक्टर पाइलोराई नामक बैक्टीरिया के कारण होती है। कुछ खास गु्रप की दर्द की दवाएं लेने से भी यह समस्या हो सकती है। इसके कारण आंतों में छेद, खून की उल्टी, पेट के दर्द जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसमें आंतों का ल्युमेन पतला होने के कारण खाना नीचे की ओर जाने में दिक्कत होती है। इसके लिए प्रोटोन पंप इन इनहिबिटर और एंटीबायटिक दवाएं दी जाती हैं। ऑपरेशन कराना हो तो एंडोस्कोपिक और कन्वेंशनल सर्जरी के विकल्प रहते हैं।

क्या खाने से बनती है गैस: व्यक्ति पर भोजन की प्रतिक्रिया अलग-अलग होती है। आमतौर पर ब्रोकली, पत्तागोभी, फूलगोभी और प्याज एसिडिटी बनाते हैं। सॉफ्ट ड्रिंक्स और जूस भी गैस कर सकते हैं। अधिक गैस रहने पर दूध और दूध से बने उत्पादों से परहेज की सलाह दी जाती है। कुछ लोगों को मटर, बे्रड, सलाद व फलियों से भी गैस बनती है। ऐसे में बेहतर यह है कि एसिडिटी की समस्या होने पर उससे कुछ समय पहले के खान-पान व दिनचर्या पर गौर करें। समानता पाए जाने पर उन चीजों से बचें।

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