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विधान मण्डल लोकतंत्र का मन्दिर एवं आस्था का केन्द्र है : योगी

लखनऊ, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मंगलवार को कहा कि विधान परिषद के 1887 से अब तक की यात्रा का अपना एक समृद्ध इतिहास रहा है।

श्री योगी ने विधान परिषद के सभापति रमेश यादव के साथ विधान परिषद के सौन्दर्यीकरण कार्याे का लोकार्पण एवं चित्र वीथिका का उद्घाटन किया। उन्होंने विधान परिषद के वर्तमान सदस्यों की पट्टिका का अनावरण भी किया। कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है। सर्वाधिक सदस्य संख्या के साथ उत्तर प्रदेश का विधान मण्डल देश का सबसे बड़ा विधान मण्डल है।

उन्होंने कहा कि विधान मण्डल लोकतंत्र का मन्दिर एवं आस्था का केन्द्र है। राज्य के इस उच्च सदन में सौन्दर्यीकरण के लिए किये गये कार्य सराहनीय हैं। उत्तर प्रदेश की विधान परिषद का इतिहास अत्यन्त गौरवशाली है। पांच जनवरी, 1887 को विधान परिषद का गठन किया गया था। उस समय उत्तर प्रदेश को ‘उत्तर पश्चिम प्रान्त एवं अवध प्रान्त’ के नाम से जाना जाता था।

श्री योगी ने कहा कि विधान परिषद के 1887 से अब तक की यात्रा का अपना एक समृद्ध इतिहास रहा है। वर्ष 1937 में अपने गठन के पश्चात विधान परिषद की प्रथम बैठक तत्कालीन परिषद भवन के एक समिति कक्ष में हुई थी। उसी समय ही विधान परिषद के लिए एक अलग मण्डप का निर्माण प्रारम्भ कर दिया गया था, जो वर्ष 1937 में तैयार हो गया। 31 जुलाई, 1937 को विधान परिषद ने अपनी प्रथम बैठक इसी मण्डप में की गयी थी। अगले 15 से 17 वर्षाें में यह विधान परिषद भवन अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण कर रहा होगा। प्रदेश की विधान परिषद ने देश व दुनिया को एक समृद्ध विरासत दी है।

उन्होने कहा कि इस विधान परिषद से महामना पं मदन मोहन मालवीय, पूर्व मुख्यमंत्री पं गोविन्द बल्लभ पन्त, पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ सम्पूर्णानन्द, सर तेज बहादुर सप्रू, प्रख्यात कवियित्री श्रीमती महादेवी वर्मा आदि का इस सदन से जुड़ाव रहा है। विधान परिषद की प्रथम बैठक थाॅर्न हिल मेमोरियल हाॅल, प्रयागराज में हुई थी।

उन्होने कहा कि लोकतंत्र में संवाद की महत्वपूर्ण भूमिका है। वर्ष 2019 में बापू की 150वीं जयन्ती के अवसर पर सतत विकास लक्ष्य पर चर्चा के लिए 36 घण्टे तक राज्य विधान मण्डल चला था। 100 सदस्यीय इस विधान परिषद में भी सतत विकास लक्ष्यों पर चर्चा की गयी थी। इस चर्चा का उद्देश्य था कि समाज के अन्तिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को लाभान्वित किया जा सके।