Breaking News

ग्रीन बेल्ट पर हिंदुस्तान जिंक की कई अव्यवस्थाएं सामने आई

चित्तौड़गढ़ राजस्थान में चित्तौड़गढ़ स्थित हिंदुस्तान जिंक उद्योग को ग्रीन बेल्ट के लिए दी गई भूमि को नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल के नियमों के विपरीत उपयोग में लेने के साथ अन्य कई तरह की अनियमितताएं सामने आई हैं।

एक प्रशासनिक समिति की रिपोर्ट में ये अनियमितताएं सामने आई हैं जिसमें ग्रीन बेल्ट पर अन्य कई निर्माणों के साथ फ्यूमर प्लांट लगा लिया तो जिंक की एक यूनिट बिना रूपांतरण के कृषि भूमि पर वर्षों से संचालित की जा रही है।

प्राप्त जानकारी अनुसार ग्रीन बेल्ट की भूमि का नियम विपरीत उपयोग करने के अलावा प्रदूषण तथा अन्य मुद्दों को लेकर पिछले कुछ समय से बीलिया ग्राम के निवासी जिनकी भूमि अवाप्त की गई थी लगातार आंदोलनरत थे। इस कारण उपखंड अधिकारी गंगरार की अध्यक्षता में एक जांच समिति बनाई गई जिसमें प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी, तहसीलदार गंगरार, गंगरार एवं पुठोली के पटवारी तथा राजस्व वृत गंगरार एवं कुंवालिया के भू अभिलेख निरीक्षक को शामिल किया गया था।

समिति ने गत वर्ष अक्टूबर में एक सप्ताह तक लगातार विवादित भूमि एवं संयत्र का निरीक्षण किया और 22 बिंदुओं की रिपोर्ट तैयार कर उपख्संड अधिकारी को सौंपी। समिति में सूचना के बावजूद प्रदूषण नियंत्रण विभाग से कोई भी अधिकारी नहीं पहुंचा था जिसका रिपोर्ट में भी उल्लेख किया गया है। रिपोर्ट में जो सबसे महत्वपूर्ण बिंदुओं का उल्लेख किया है उसके अनुसार जिंक प्रबंधन ने जहां ग्रीन बेल्ट की भूमि पर अनियमित तरीके से अपने फ्यूमर प्लांट का निर्माण कर लिया गया है तो वहीं जिंक संयंत्र की एक यूनिट बिना भू रूपांतरण के कृषि भूमि पर संचालित की जा रही है। इस रिपोर्ट में खुद राजस्व विभाग की बड़ी खामी सामने आ गई कि सरकार ने जिंक के प्रभाव में आकर चारागाह के साथ अपने ही नाले (प्राकृतिक जल स्रोत) को ही बेच दिया है और आज की खातेदारी नकल में हिंदुस्तान जिंक को किसान घोषित कर दिया।

रिपोर्ट के अनुसार प्रमुख बिंदुओं में बताया गया कि वेदांता ग्रुप के यहां स्थित हिंदुस्तान जिंक संयत्र ने वर्ष 2009 में ग्राम बिलीया की 109 हैक्टेयर भूमि ग्रीन बेल्ट के नाम पर ग्रामीणों के विरोध के बावजूद अवाप्त कर ली गई थी जिस पर नियमानुसार आधी से अधिक भूमि पर कोई पौधारोपण नहीं किया गया और जहां पौधारोपण किया गया है वे पौधे करंज के पौधे है जो प्रदूषण अवशोषक पौधों की श्रेणी में नहीं आते हैं और इनकी उंचाई भी मात्र एक से दो मीटर है जबकि नियमानुसार डंचाई 15 से 20 मीटर होनी चाहिए थी, पौधों की संख्या प्रति हैक्टेयर 2000 की बजाय केवल 1100 पाई गई इसके अलावा पौधारोपण में अन्य कई खामियां पाई गई।

पौधारोपण के साथ रिपोर्ट में जो ग्रीन बेल्ट भूमि के दुरूपयोग के महत्वपूर्ण बिंदू उल्लेख किये गये हैं उनमें बताया गया कि जिंक प्रबंधन ने ग्रीन बेल्ट भूमि पर 10 मीटर चौड़ी एवं तीन किलोमीटर लंबी सड़कें बना ली है जिन पर रात दिन जहरीले वेस्ट मटैरियल जीरोपिक्स से भरे डम्पर गुजरते हैं और इस जहरीले वेस्ट की डम्पिंग भी ग्रीन बेल्ट भूमि पर बने तीन भण्डारण क्षेत्रों पर ही खुले में की हुई है जिससे यह उड़कर आसपास की कृषि भूमि को भी जहरीला बना रहा है तो इससे रिसने वाले जहरीले पानी को भी पास के नाले में ही विसर्जित किया जा रहा है जो भूमि के साथ पानी को भी जहरीला कर रहा है। इसके अलावा यहीं पर जिंक ने कोयला भण्डारण भी किया हुआ है। जबकि इसी भूमि पर एक पाईप लाईन भी भूमिगत डाल दी है। उपखंड अधिकारी ने अग्रिम कार्रवाई के लिए इस रिपोर्ट को जिला कलेक्टर को सौंप दी है जिसे राज्य सरकार को भेज दी गई।