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पीएम मोदी ने कहा,पूरी दुनिया को ज्ञान से आलोकित कर रहा है गुरु नानक के संदेश का प्रकाश

नयी दिल्ली, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरु नानक देव के 551वें प्रकाश पर्व के मौके पर उन्हें श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हुए आज कहा कि कनाडा से न्यूजीलैंड तथा सिंगापुर से दक्षिण अफ्रीका तक गुरु नानक देव के संदेश मानव समाज को ज्ञान के प्रकाश से आलोकित कर रहे हैं।

श्री मोदी ने आकाशवाणी पर प्रसारित अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ में पांच दिसंबर को महर्षि अरविंद और छह दिसंबर को डॉ. भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि का स्मरण करते हुए दोनों विभूतियों को श्रद्धांजलि अर्पित की।

प्रधानमंत्री ने कहा, “आज पूरी दुनिया में गुरु नानक देव जी का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। वेंकूवर से वेलिंगटन तक और सिंगापुर से दक्षिण अफ्रीका तक, उनके संदेश हर तरफ सुनाई देते हैं।” उन्होंने कहा, “बीते कुछ वर्षों में कई अहम पड़ाव आये और एक सेवक के तौर पर हमें बहुत कुछ करने का अवसर मिला। गुरु साहिब ने हमसे सेवा ली। मुझे महसूस होता है, कि, गुरु साहब की मुझ पर विशेष कृपा रही जो उन्होंने मुझे हमेशा अपने कार्यों में बहुत करीब से जोड़ा है।”

उन्होंने कहा, “ये, गुरु नानक देव जी ही थे, जिन्होंने, लंगर की परंपरा शुरू की थी और आज हमने देखा कि दुनिया-भर में सिख समुदाय ने किस प्रकार कोरोना के इस समय में लोगों को खाना खिलाने की अपनी परंपरा को जारी रखा है , मानवता की सेवा की – ये परंपरा, हम सभी के लिए निरंतर प्रेरणा का काम करती है। मेरी कामना है, हम सभी, सेवक की तरह काम करते रहे। गुरु साहिब मुझसे और देशवासियों से इसी प्रकार सेवा लेते रहें।”

उन्होंने गुजरात के कच्छ में 2001 में क्षतिग्रस्त लखपत गुरुद्वारा साहिब के जीर्णोद्धार का उल्लेख करते हुए कहा कि श्री गुरु नानक देव अपने उदासी के दौरान लखपत गुरुद्वारा साहिब में रुके थे। 2001 के भूकंप से इस गुरूद्वारे को भी नुकसान पहुँचा था। गुरु साहिब की कृपा से ही वह इसका जीर्णोद्धार सुनिश्चित कर पाये और उसके गौरव और भव्यता को भी फिर से स्थापित कर पाये। गुरुद्वारा के पुनर्निर्माण कार्य में सिख समुदाय की ना केवल सक्रिय भागीदारी रही, बल्कि, उनके ही मार्गदर्शन में ये काम हुआ।

उन्होंने कहा कि लखपत गुरुद्वारा के संरक्षण के प्रयासों को 2004 में संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के एशिया प्रशांत धरोहर अवार्ड में विशिष्टता के लिए पुरस्कृत किया गया। उन्होंने कहा कि उन्हें कई बार लखपत गुरुद्वारा जाने का सौभाग्य मिला और वहां जाकर उन्हें असीम ऊर्जा मिली।

उन्होंने कहा, “मैं, इस बात के लिए बहुत कृतज्ञ हूँ कि गुरु साहिब ने मुझसे निरंतर सेवा ली है। पिछले वर्ष नवम्बर में ही करतारपुर साहिब कॉरीडोर का खुलना बहुत ही ऐतिहासिक रहा। इस बात को मैं जीवनभर अपने ह्रदय में संजो कर रखूँगा। यह, हम सभी का सौभाग्य है, कि, हमें श्री दरबार साहिब की सेवा करने का एक और अवसर मिला। विदेश में रहने वाले हमारे सिख भाई-बहनों के लिए अब दरबार साहिब की सेवा के लिए राशि भेजना और आसान हो गया है। इस कदम से विश्व-भर की संगत, दरबार साहिब के और करीब आ गई है।”

श्री मोदी ने 5 दिसम्बर को श्री अरविंद की पुण्यतिथि पर उन्हें स्मरण करते हुए कि श्री अरबिंदो को हम जितना पढ़ते हैं, उतनी ही गहराई, हमें, मिलती जाती है। युवा साथी श्री अरबिंदो को जितना जानेंगे, उतना ही अपने आप को जानेंगें, खुद को समृद्ध करेंगें। जीवन की जिस भाव अवस्था में वे हैं, जिन संकल्पों को सिद्ध करने के लिए प्रयासरत हैं, उनके बीच, हमेशा से ही श्री अरविंद को एक नई प्रेरणा देते पाएंगें, एक नया रास्ता दिखाते हुए पाएंगें।

उन्होंने कहा कि आज जब हम ‘लोकल के लिए वोकल’ इस अभियान के साथ आगे बढ़ रहे हैं तो श्री अरविंद का स्वदेशी का दर्शन हमें राह दिखाता है। उन्होंने बंगला भाषा में उनकी एक कविता को उद्धृत किया –

‘छुई शुतो पॉय-मॉन्तो आशे तुंग होते। दिय-शलाई काठि, ताउ आसे पोते ।।

प्रो-दीप्ती जालिते खेते, शुते, जेते। किछुते लोक नॉय शाधीन ।।

यानि, हमारे यहां सुई और दियासलाई तक विलायती जहाज से आते हैं। खाने-पीने, सोने, किसी भी बात में, लोग, स्वतन्त्र नहीं है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि महर्षि अरविंद कहते थे कि स्वदेशी का अर्थ है कि हम अपने भारतीय कामगारों, कारीगरों की बनाई हुई चीजों को प्राथमिकता दें। ऐसा भी नहीं कि श्री अरविंद ने विदेशों से कुछ सीखने का भी कभी विरोध किया हो। जहाँ जो नया है वहां से हम सीखें जो हमारे देश में अच्छा हो सकता है उसका हम सहयोग और प्रोत्साहन करें, यही तो आत्मनिर्भर भारत अभियान में, वोकल फॉर लोकल मन्त्र की भी भावना है। ख़ासकर स्वदेशी अपनाने को लेकर उन्होंने जो कुछ कहा वो आज हर देशवासी को पढ़ना चाहिये।

श्री मोदी ने कहा कि शिक्षा को लेकर भी श्री अरविंद के विचार बहुत स्पष्ट थे। वो शिक्षा को केवल किताबी ज्ञान, डिग्री और नौकरी तक ही सीमित नहीं मानते थे। श्री अरविंद कहते थे हमारी राष्ट्रीय शिक्षा, हमारी युवा पीढ़ी के दिल और दिमाग की दोनों की ट्रेनिंग होनी चाहिये, यानि, मस्तिष्क का वैज्ञानिक विकास हो और दिल में भारतीय भावनाएं भी हों, तभी एक युवा देश का और बेहतर नागरिक बन पाता है, श्री अरविंद ने राष्ट्रीय शिक्षा को लेकर जो बात तब कही थी एवं जो अपेक्षा की थी आज देश उसे नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के जरिए पूरा कर रहा है।

प्रधानमंत्री ने छह दिसम्बर को बाबा साहब अम्बेडकर की पुण्य-तिथि पर श्रद्धासुमन अर्पित किये। उन्होंने कहा कि ये दिन बाबा साहब को श्रद्धांजलि देने के साथ ही देश के प्रति अपने संकल्पों, संविधान ने, एक नागरिक के तौर पर अपने कर्तव्य को निभाने की जो सीख हमें दी है, उसे दोहराने का है।