वक्फ कानून पर अंतरिम रोक वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी, फैसला सुरक्षित

मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने संबंधित सभी पक्षों की दलीलें विस्तारपूर्वक सुनीं।
पीठ के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी की अगुवाई में अंतरिम राहत की गुहार लगाई गई, जबकि केंद्र सरकार का पक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने रखते हुए संशोधित कानून के के पक्ष में दलीलें पेश कीं।
सुनवाई के दौरान सर्वश्री सिब्बल और अभिषेक सिंघवी की अगुवाई में याचिकाकर्ताओं ने विभिन्न दलीलों के माध्यम से नए प्रावधानों के कार्यान्वयन पर अंतरिम रोक लगाने का की गुहार लगाई। दोनों अधिवक्ताओं ने जोर देकर हुए कहा कि वर्तमान स्वरूप में यह कानून मौलिक धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
श्री सिब्बल ने कहा, “नये कानून के तहत केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिमों के अनुपातहीन प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया गया है। उन्होंने दावा किया कि इस प्रकार के प्रावधान से “वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन का अधिकार कमजोर हो गया है। वजह यह कि 11 में से 7 सदस्य गैर-मुस्लिम हो सकते हैं।”
संसदीय कानून की संवैधानिकता की धारणा पर मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी का जवाब देते हुए अधिवक्ता सिब्बल ने कहा कि कानून पर रोक लगाने में विफलता अपूरणीय क्षति पहुंचाएगी, खासकर तब जब जिला कलेक्टर अब यह तय करते हैं कि कोई संपत्ति वक्फ है या सरकारी स्वामित्व वाली है।
श्री मेहता ने अदालत के समक्ष केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए याचिकाकर्ताओं के रुख का कड़ा विरोध किया।
उन्होंने जोर देकर कहा कि इस्लामी परंपरा संबंधित वक्फ इस्लाम के तहत एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है। वक्फ बोर्ड धर्मनिरपेक्ष प्रशासनिक कार्य करते हैं। इसलिए ऐसे बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करना संवैधान के दायरे में है।
उन्होंने कहा, “वक्फ एक इस्लामी अवधारणा है, लेकिन यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। दान हिंदू धर्म और ईसाई धर्म सहित हर धर्म में मौजूद है, लेकिन शीर्ष अदालत ने फैसला दिया है कि दान एक अनिवार्य धार्मिक प्रथा नहीं है। इसी तरह वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन, उचित खाते और ऑडिट सुनिश्चित करना, सभी प्रकृति में धर्मनिरपेक्ष हैं।’
उन्होंने आगे स्पष्ट किया कि वक्फ बोर्ड में अधिकतम दो गैर-मुस्लिम सदस्य होने से वक्फ के धार्मिक स्वरुप पर कोई असर नहीं पड़ता है, क्योंकि ये बोर्ड धार्मिक गतिविधियों में हस्तक्षेप नहीं करते हैं।
शीर्ष अदालत के समक्ष अपनी प्रारंभिक प्रतिक्रिया में केंद्र सरकार ने कहा था कि 2013 से वक्फ भूमि में 116 फीसदी की वृद्धि हुई है, जो 18.29 लाख एकड़ से बढ़कर 39.21 लाख एकड़ हो गई है।
वक्फ कानून में संशोधन की वैधता को चुनौती देने वालों में कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के सांसद असदुद्दीन ओवैसी शामिल हैं।
संशोधित कानून का समर्थन करने वाले हस्तक्षेपकर्ताओं में भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व वाली छह राज्य सरकारें भी शामिल हैं। हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और असम ने कानून का समर्थन किया। इन राज्यों ने प्रशासनिक निहितार्थों का हवाला देते हुए संशोधन का समर्थन किया है।
गौरतलब है कि लोकसभा ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम को तीन अप्रैल 2025 को पारित किया था। राज्यसभा ने इसे 4 अप्रैल को मंजूरी दी और अगले ही दिन पांच अप्रैल को राष्ट्रपति ने संशोधित कानून पर अपनी मुहर लगा दी थी।