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निर्भया कांड से बदल गई इनकी जिंदगी

नयी दिल्ली, निर्भया कांड को याद करते हुए दिल्ली पुलिस के तत्कालीन प्रमुख नीरज कुमार की छोटी बेटी और पत्नी ने कहा कि पुलिस ने त्वरित कार्रवाई की और तीन दिनों के भीतर दोषियों को पकड़ लिया लेकिन इस घटना से उनकी जिंदगी बदल गई।

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पेशे से पियानो वादिका नीरज कुमार की बेटी अंकिता ने कहा कि जब उनके पिता ने 16 दिसंबर 2012 को फिजियोथैरेपी की छात्रा से सामूहिक दुष्कर्म की घटना का संक्षिप्त उल्लेख किया तो वह स्तब्ध रह गईं। उन्होंने कहा कि उस रात की यादें आज भी उन्हें कंपा देती है।
दोषियों की फांसी पर संतोष व्यक्त करते हुए अंकिता और उनकी मां माला कुमार ने याद करते हुए कहा कि पुलिस के खिलाफ बढ़ते प्रदर्शन को देखते हुए उन्होंने कुमार को इस्तीफा देने की सलाह दी थी।

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अंकिता ने कहा, ‘‘ लगातार दबाव बढ़ रहा था, मैं नहीं चाहती थी कि वह इस कठिन दौर से गुजरे। मैं चाहती थी कि वह इस्तीफा दे दें क्योंकि यह दौर मेरे लिए कठिन बन रहा था। मेरे आसपास के लोगों का रुख बदल रहा था, मुझे धमकी भरे फोन कॉल आ रहे थे और पुलिस जागे इसके लिए मुझसे और मेरी बहन से भी दुष्कर्म होने की दुआएं मांग रहे थे।’’

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मां और बेटी ने प्रेस की आलोचना करते हुए कहा कि वे केवल नीरज कुमार विरोधी खबर प्रकाशित करना चाहते थे और जो इसके अनुरूप नहीं था उसे कभी प्रसारित या लिखा नहीं गया। अंकिता ने कहा, ‘‘ एक दिन जब मेरे घर के ही तलघर में स्थित पियानो स्कूल में मौजूद थी तब एक टीवी पत्रकार कैमरे के साथ अंदर आया और उसने मेरे पिता के नेतृत्व वाली अक्षम पुलिस के बारे में मेरी राय पूछी।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैंने उसका प्रतिकार किया और कहा कि वह मेरे तलघर में है और आसानी से नुकसान पहुंचा सकता है और पिता तब आएंगे जब नुकसान हो चुका होगा। मैं उसे अपना रुख समझाने की कोशिश कर रही थी लेकिन वह समझ नहीं पा रहा था।’’

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उल्लेखनीय है कि सात साल के कानूनी संघर्ष के बाद शुक्रवार को अंतत: चार दोषियों को फांसी दी गई। आवास पर ही पिता के बने कार्यालय में बैठी अंकिता ने कहा, ‘‘मैंने महसूस किया कि मेरे पिता चाहे कितने भी अच्छे हों वे (आलोचक) हमेशा कृत्घन होंगे। मैं चाहती थी कि वह नौकरी छोड़ दें और शांतिपूर्ण जीवनयापन करें लेकिन जिस चीज ने मुझे चकित किया वह मेरे पिता का आत्मविश्वास था। वह अडिग थे।’’
पिता को गले लगाकर अंकिता ने कहा कि नौकरी छोड़ने का परामर्श देना पूरी तरह से गलत था।

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उन्होंने कहा, ‘‘ आप जानते हैं कि मेरे पिता अग्निपरीक्षा से गुजरे लेकिन अपने आलोचकों को उनका संदेश प्रबल और स्पष्ट था कि अगर आप किसी को गोली मारना चाहता हैं तो पहले मुझे मारें।’’ वर्ष 1976 बैच के भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी नीरज कुमार ने कहा, ‘‘हां वह (अंकिता) चाहती थी कि मैं नौकरी छोड़ दूं लेकिन मेरा जवाब साधारण था। मैं रणछोड़ नहीं हूं और वह भी नहीं चाहती कि उसका पिता युद्ध शुरू कर उसे बीच में ही छोड़ दे।’’

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अंकिता ने कहा कि निर्भया कांड समाज की असफलता थी न कि पुलिस की। उन्होंने कहा, ‘‘देखिए आज भी हम अपने बच्चों को ठीक से शिक्षित नहीं करते। आज भी हमारे देश में महिलाएं आसान निशाना है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ मुझे अपने दोस्तों का मेरे प्रति रुख में हुआ बदलाव याद है। उन्होंने मुझसे अलग तरीके से बात करना शुरू कर दिया और मुझे लगने लगा था कि जैसे मैंने कुछ गलत किया है और हम नाकाम हुए हैं।’’

अंकिता ने कहा कि वह अजीब महसूस करती थी जब लोग पुलिस के प्रति गुस्से का इजहार करते थे जिसने तुरंत दोषियों को पकड़ा था।
रंगमंच हस्ती माला कुमार ने कहा, ‘‘ मैं इस बात से सहमत हूं कि वह घटना दिल दहलाने वाली थी लेकिन यह पुलिस का सकारात्मक पक्ष देखने से नहीं रोकता। हालांकि, सभी ने नकारात्मक नजरिये से देखा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘एक परिवार के तौर पर वह बहुत ही मुश्किल समय था। हालांकि, मैं जानती थी कि कुछ भी उन्हें अपने कर्तव्य से डिगा नहीं सकता और वह इस परीक्षा में सफल होंगे लेकिन लोगों का उनके प्रति रवैया, राजनीतिज्ञों का रवैया…।’’ माला कुमार ने कहा कि वह और उनकी बेटी ने कई रातें बिना सोए बिताईं लेकिन हमने कभी भी उन्हें (नीरज कुमार) घबराया और निराश नहीं देखा। सबसे बेहतर चीज यह है कि वह फौलाद से बने हुए हैं और सख्त कदम उठाने से नहीं हिचकते।