नई दिल्ली, बेहद गरीब परिवार से आने वालीं इस खिलाड़ी ने जता दिया कि प्रतिभा और हौसले के आगे मुसीबतें घुटने टेक देतीं हैं. बेटी की सफलता पर रिक्शा चालक पिता को बधाई देने वालों का तांता लगा है.
पश्चिम बंगाल की स्वप्ना बर्मन ने इंडोनेशिया के जकार्ता में जारी 18वें एशियाई खेलों की हेप्टाथलन स्पर्धा में स्वर्ण पदक अपने नाम किया। वह इस स्पर्धा में स्वर्ण जीतने वाली भारत की पहली महिला खिलाड़ी हैं. स्वप्ना ने 7 स्पर्धाओं में कुल 6026 अंकों के साथ पहला स्थान हासिल किया. जैसे ही स्वप्ना बर्मन के सोना जीतने की खबर आई तो उत्तरी बंगाल के जलपाईगुड़ी शहर में खुशी छा गई.
पिछले साल एशियाई एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में भी वह स्वर्ण जीत कर लौटी थी. स्वप्ना ने 100 मीटर में हीट-2 में 981 अंकों के साथ चौथा स्थान हासिल किया था. ऊंची कूद में 1003 अंकों के साथ पहले स्थान पर कब्जा जमाया.गोला फेंक में वह 707 अंकों के साथ दूसरे स्थान पर रहीं। 200 मीटर रेस में उसने हीट-2 में 790 अंक लिए.
स्वप्ना के पिता पंचन बर्मन रिक्शा चलाते हैं, लेकिन बीते कुछ दिनों से उम्र के साथ लगी बीमारी के कारण बिस्तर पर हैं.बेटी के पदक जीतने के बाद मां बशोना ने कहा, “मैंने उसका प्रदर्शन नहीं देखा. मुझे जब उसके जीतने की खबर मिली तो मैं अपने आंसू रोक नहीं पाई.” बशोना ने बेहद भावुक आवाज में कहा, “यह उसके लिए आसान नहीं था. हम हमेशा उसकी जरूरतों को पूरा नहीं कर पाते थे, लेकिन उसने कभी भी शिकायत नहीं की.”
स्वप्ना के बचपन के कोच सुकांत सिन्हा ने कहा “मैं 2006 से 2013 तक उसका कोच रहा हूं. वह काफी गरीब परिवार से आती है और उसके लिए अपनी ट्रेनिंग का खर्च उठाना मुश्किल होता है. जब वह चौथी क्लास में थी तब ही मैंने उसमें प्रतिभा देख ली थी. इसके बाद मैंने उसे ट्रेनिंग देना शुरू किया.”
एक समय ऐसा भी था कि स्वप्ना को अपने लिए सही जूतों के लिए संघर्ष करना पड़ता था क्योंकि उनके दोनों पैरों में छह-छह उंगलियां हैं. पांव की अतिरिक्त चौड़ाई खेलों में उसकी लैंडिंग को मुश्किल बना देती है इसी कारण उनके जूते जल्दी फट जाते हैं.