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मराठा आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट, 22 जनवरी को करेगा सुनवाई

नयी दिल्ली,  उच्चतम न्यायालय ने  कहा कि महाराष्ट्र में शिक्षा और सरकारी नौकरियों में मराठा समुदाय के लिये आरक्षण की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अगले साल 22 जनवरी को सुनवाई की जायेगी।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की तीन सदस्यीय पीठ ने सभी पक्षकारों से कहा कि इस दौरान वे अपने-अपने दस्तावेज पूरे कर लें। मराठा आरक्षण का विरोध करने वाले पक्षकारों में से एक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अरविन्द दातार ने कहा कि इस मामले में सुनवाई की जरूरत है क्योंकि महाराष्ट्र का यह कानून शीर्ष अदालत द्वारा सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण के लिये निर्धारित 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करता है।

इस पर पीठ ने कहा, ‘‘हम याचिका की दलीलों से संतुष्ट होने पर ही इसे संविधान पीठ को सौंप सकते हैं।’’ पीठ ने कहा कि यह मामला अब 22 जनवरी को सूचीबद्ध होगा। इससे पहले, शीर्ष अदालत ने 12 जुलाई को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछडा वर्ग कानून, 2018 की संवैधानिक वैधता पर विचार करने का निश्चय किया थां इसी कानून के तहत राज्य में शिक्षा और नौकरियों में मराठा समुदाय को आरक्षण देने का फैसला किया गया है।

हालांकि, शीर्ष अदालत ने कुछ बदलावों के साथ इस कानून को सही ठहराने के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था। शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया था कि यह आरक्षण 2014 से लागू करने का उच्च न्यायालय का आदेश प्रभावी नहीं होगा। शीर्ष अदालत के आदेश में इस कानून को पिछली तारीख से लागू करने से इंकार कर दिया था। न्यायालय ने यह आदेश उस वक्त दिया जब एक वकील ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने 2014 से करीब 70, 000 रिक्तियों में आरक्षण लागू करने का आदेश दिया है। पीठ उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली पांच याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। इनमें जे लक्ष्मण राव और अधिवक्ता संजीत शुक्ल भी शामिल हैं।

उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि मराठा समुदाय के लिये 16 प्रतिशत आरक्षण न्यायोचित नहीं है और रोजगार के मामले में यह 12 फीसदी तथा शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के मामले में 13 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए। उच्च न्यायालय ने 27 जुलाई के आदेश में कहा था कि विशेष परिस्थितियों में शीर्ष अदालत की 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा लांघी जा सकती है। उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की इस दलील को भी स्वीकार कर लिया था कि मराठा समुदाय शैक्षणिक और सामाजिक दृष्टि से पिछड़ा है और उसकी तरक्की के लिये आवश्यक कदम उठाना सरकार का कर्तव्य है।