इटावा, यूपी विधान सभा चुनाव अपने चरम पर है, लेकिन समाजवादी पार्टी की जंग है कि थमने का नाम ही नही ले रही है। इसका एक बड़ा कारण सपा के ही नेता हैं जो चाचा भतीजे की इस लड़ाई की आग को लगातार हवा देते नजर आ रहें हैं। शायद उन्हे इसमे अपना फायदा नजर आ रहा है। उन्हे इस बात की कतई परवाह नही है कि आखिर इस रार की आग मे पूरी पार्टी का ही नुकसान है। एक बार फिर अखिलेश यादव की इटावा रैली में यह बात उभर कर आयी।
अखिलेश की रैली में जहां इटावा की भरथना और इटावा सीट के कैंडिडेट नजर आए, वहीं शिवपाल यादव ने इस रैली से दूरी बनाए रखी। इससे साफ है कि इन दोनों के बीच अभी भी खटास बरकरार है। रैली में अखिलेश ने सपा कैंडिडेट्स के लिए वोट मांगा। इस दौरान उन्होंने इटावा और भरथना सीट के उम्मीदवारों के नाम भी लिए। लेकिन एक बार भी शिवपाल सिंह यादव का नाम नहीं लिया और न ही उनके लिए वोट की अपील की। इटावा से कुलदीप कुमार और भरथना से कमलेश कठेरिया सपा के कैंडिडेट हैं। ये दोनों नेता अखिलेश के करीबी हैं। जसवंतनगर सीट से शिवपाल सपा के कैंडिडेट हैं।
अखिलेश यादव ने रैली में कहा कि कुछ लोग हमारी साइकिल छीनने वाले थे, लेकिन उन्हीं की साइकिल छिन गई। हमने लोगों पर ज्यादा ही भरोसा कर लिया। जिन पर भरोसा किया उन्होंने हमें और नेता जी को ही लड़ा दिया। पता नहीं वो राजनीति थी या स्वार्थ था। मैंने कभी साइकिल को हराने की बात नहीं की लेकिन सुना है इटावा में कहीं- कहीं मोबाइल से लोगों को बुलाकर साइकिल हराने की बात कही जा रही है। इन लोगों ने साजिश की, जब साजिश का पर्दाफाश हुआ तो कहते हैं विरासत में कुछ नहीं मिला।
अखिलेश के भाषण के दौरान उनके चचेरे चाचा रामगोपाल यादव मंच पर मौजूद थे। अखिलेश बोल ही रहे थे कि रामगोपाल उनके पास पहुंचे और कान में कुछ कहा, इसके बाद तो अखिलेश ने शिवपाल पर आरोपों की बौछार कर दी। उन्होंने कहा कि हमने सुना है कि यहां पर एक नई पार्टी भी बनने जा रही है. ये आरोप तो हम पर लगता था कि हम नई पार्टी बनाने जा रहे हैं। कौन समझाए कि नई पार्टी बनाने से कुछ नहीं होता। ये लोग धोखे से नेताजी से आशीर्वाद ले रहे थे। इन्हीं लोगों ने धोखे से हमें भी पार्टी से निकाला था। जिन्होंने नेताजी और मेरे बीच खाई पैदा की है, इटावा के लोग उसे सबक सिखाने का काम करें।
शिवपाल सिंह पर अखिलेश यादव के इस वार मे सांसद नरेश अग्रवाल भी शामिल दिखे। नरेश अग्रवाल ने बिना नाम लिए शिवपाल की तुलना कूड़े से कर दी और कह दिया कि कूड़े की जगह डस्टबीन में होती है। नरेश अग्रवाल ने कहा कि पतझड़ हरसाल आता है, पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और नए पत्ते आ जाते हैं। पतझड़ के झड़े पत्तों पर ज्यादा बात नहीं की जाती उन्हें झाड़ू से साफ करके कूड़ेदान में डाल दिया जाता है।