प्रयागराज, दुनिया के सबसे बड़े सांस्कृतिक और आध्यात्मिक माघ मेला कल्पवासियों और संन्यासियों को त्रिवेणी में आस्था की डुबकी लगाने का अवसर प्रदान करता है वहीं दूर दराज से आने वाले लोगों को रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े सामानों के लिए रोजगार का मौका भी देता है।
दुनिया का यह सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन पूरी दुनिया में अपनी आध्यात्मिकता और विलक्षणता के लिए प्रसिद्ध है। माघ मेले में रोजगार का बड़ा अवसर है। मेला प्रशासन ने मेला क्षेत्र के त्रिवेणी रोड परेड ग्राउंड पर अस्थायी दुकानों का आंवटन किया है जिससे सरकार को भी राजस्व के साथ-साथ कारोबार करने वाले भी अच्छा मुनाफा कमाते हैं। यहां स्थानीय और पड़ोसी राज्यों के अलावा राजस्थान, उत्तराखंड, पंजाब और हिमाचल प्रदेश आदि से भी लोग रोजगार करने पहुंचे है। मेला शुरू होने के साथ हजारों दुकानदार यहां पर आते हैं और मेला खत्म होने के साथ धीरे धीरे वापस लौट जाते हैं।
मेले क्षेत्र में महिलाओं के साड़ी, साज-श्रृंगार के साथ घर गृहस्थी वाली रोजमर्रा की उपयोगी चीजों के साथ कृषि उपकरण भी बिक्री के लिए रहते हैं। स्थानीय लोग मेले में श्रद्धालुओं और कल्पवासियों को मिट्टी के चूल्हे, पुआल, जलाऊ लकड़ी के साथ सब्जियों का भी व्यवसाय कर अच्छा लाभ कमाते हैं। मेला के एक हिस्सा परेड़ क्षेत्र में सर्दियों से बचने के लिए दूर दराज से बिक्री के लिए रजाई,गद्दे, गर्म चादर आदि की दुकानें सजी हैं, दूसरी तरफ सड़क किनारे गृहस्थी सहित कृषि उपकरण कुदाल, हंसिया, खुरपी, रामी, गहदल, गैतीं, कड़ाही, तावा, पौना, बेलन, चिमटा, चूल्हा, ताला, सिकड़, हथौड़ा, कुल्हाड़ी, आरी, छेनी, चाकू हैं।
संगम तट तक जाने वाले रास्तों में, झूंसी क्षेत्र में शंकराचार्य मार्ग, त्रिवेणी मार्ग सहित सजी तमाम दुकानों में एक दुकान सलीम की है। वह सिंदूर, रंग, हींग, लोहबान आदि बेचते हैं। माघ मेला शुरू होने से पहले प्रयाग में आते हैं। वह उत्तर प्रदेश के कानपुर के रहने वाले हैं। श्रद्धालुओं से रह रह कर कहते हैं, ‘हींग,सिंदूर रंग लेते जाओ’। यशोदा के साथ उनकी बहू, बेटा, पत्नी समेत करीब 15 लोग हैं, अच्छा मुनाफा कमाते हैं। सलीम जैसे हजारों लोग यहां पर रोजगार के लिए आते है और मेला खत्म होने के बाद चले जाते हैं।
सलीम ने बताया कि माघ मेला में कम कमाई होती है लेकिन अगले साल कुंभ जब लगेगा जब भीड़ बढ़ेगी तब असली कमाई होगी। वे परिवार समेत प्रयागराज के अलावा अन्य तीर्थस्थलों पर जहां मेला लगता है, वहां जाते हैं। तीर्थस्थलों पर सिंदूर, रंग, हींग आदि बेचकर उनके परिवार की जीविका चलते है। बरसात के चार महीने वे लोग घर पर रहते हैं क्योंकि बरसात में रंग और सिंदूर को खुले में रखकर नहीं बेचा जा सकता है। सलीम जैसे बड़ी संख्या में आजीविका चलाने वाले लोग यहां झोपड़ी डालकर पड़े हुए हैं।