इटाव, उत्तर प्रदेश के इटावा में चंबल नदी की बाढ़ में घड़ियाल के हजारो बच्चे मौत के मुंह में समाने का अदेंशा जताया जा रहा है ।
चंबल सेंचुरी के डीएफओ दिवाकर श्रीवास्तव ने आज यहां बताया कि चंबल में आई भीषण बाढ़ की वजह से घड़ियाल के हजारों बच्चों को पानी के तेज बहाव से नुकसान पहुंचा है और छोटे बच्चों के बचने की उम्मीद न के बराबर है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2019 में भी काफी पानी चंबल में आया था तब का आकलन है कि बड़े घड़ियाल बचे थे। इस वर्ष भी उम्मीद है कि बड़े घड़ियाल अपने ठिकानों पर लौट आएंगे। चंबल में इस वक्त घड़ियालों की संख्या 1910 व मगरमच्छों की संख्या 820 है।
राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी में आई बाढ़ घड़ियालों के बच्चों पर आफत बनी है। इस वर्ष जून में चंबल नदी में हुई गणना में घड़ियालों के 4050 बच्चों की जानकारी सामने आई थी ,लेकिन वह सभी प्राकृतिक आपदा का शिकार होकर तेज बहाव में बह गए। वैसे भी जन्म के बाद केवल पांच प्रतिशत बच्चाें क जीवित रहने की उम्मीद रहती है।
लखनऊ के कुकरैल से करीब 1500 घड़ियालों के बच्चे भी इस वर्ष यहां लाकर छोड़े गए थे, लेकिन चंबल का जलस्तर बढ़ने से अब इनकी जिंदगी खतरे में पड़ गई। दरअसल नदी के किनारे ही घड़ियाल घोसले बनाते हैं और बच्चे यहीं रहते हैं। इस बार चंबल का जलस्तर उम्मीद से ज्यादा बढ़ने के कारण व तेज बहाव होने के कारण अनेक बच्चों के बहने की आशंका है। चंबल के एक गांव निवासी महेंद्र सिंह चौहान बताते हैं कि इस समय बढ़े जलस्तर में कोई भी जीव नहीं दिखाई दे रहा है। बस चारों तरफ पानी-पानी ही है।
पर्यावरणीय संस्था सोसायटी फार कंजरवेशन आफ नेचर के महासचिव डा.सचिव एवं वन्य जीव विशेषज्ञ डा. राजीव चौहान का कहना है कि पंद्रह जून तक घड़ियालों के प्रजनन का समय होता है जो मानसून आने से आठ-दस दिन पूर्व तक रहता है। घड़ियाल प्रजनन का यह दौर ही उनके बच्चों के लिए काल के रुप में होता है क्योंकि बरसात में चंबल नदी का जलस्तर बढ़ जाता है। परिणामस्वरूप घडियालों के बच्चे नदी के तेज बहाव में बहकर जाते हैं। इन बच्चों को बचाने के उपाय बताते हैं कि यदि इन बच्चों को कृत्रिम गर्भाधान केंद्र में संरक्षित कर तीन साल तक बचा लिया जाए तो इन बच्चों को खतरे से टाला जा सकता है। उन्होंने कहा कि वैसे भी महज दस फीसदी ही बच्चे बच पाते हैं जबकि 90 फीसदी बच्चों की पानी में बह जाने से मौत हो जाती है।
गौरतलब है कि वर्ष 2007 के आखिर मे चंबल मे अनजान बीमारी के कारण बड़ी संख्या में घाडियालो की मौत हो गई थी, जिनको संरक्षित करने मे चंबल सेंचुरी के अधिकारियों को कई साल लग गये थे। चंबल मे जितने घाड़ियालो की मौत अनजान बीमारी के कारण हुई उतने घाड़ियाल आज तक पूरी दुनिया में नहीं मरे। इसी वजह से दुनिया भर के घाड़ियाल विशेषज्ञो ने चंबल आ कर कई स्तर से अध्ययन किया गया था,लेकिन वे भी किसी ठोस नतीजे पर नही पहुंच सके थ। चंबल नदी का जलस्तर खतरे के निशान नौ मीटर को पार कर से इटावा में बडे पैमाने पर फसलों को नुकसान तो हुआ ही है साथ ही जलचरो को भी नुकसान का अंदेशा जताया जा रहा है। अमूमन जब कभी भी बाढ़ आती है तो इसी तरह की तस्वीर सामने आती है ।