किसी प्रिय से जुदाई का दुख जीवन के बाकी दुखों पर भारी पड़ता है। यह ऐसा वक्त होता है, जब दुनिया खत्म होती महसूस होती है और अपने सारे विश्वासों की नींव हिल जाती है। कारण चाहे जो हो, लेकिन किसी का साथ ना होना मन आसानी से स्वीकार नहीं करता। चूंकि सच्चाई को आपका मन स्वीकार करना नहीं चाहता है, तो व्यवहार और मानसिकता में परिवर्तन आने लगता है। आपको पता भी नहीं चलता, लेकिन आप ज्यादा चिड़चिड़े, गुमसुम, सनकी या फिर निराश व्यक्ति में बदलने लगते हैं। ब्रेकअप हो या मृत्यु का शोक, अपने दुख में खुद को संभालने के लिए मनोवैज्ञानिक कुछेक तरीके अपनाने की सलाह देते हैंः
जरूरी है दुख मनाना:- हमें दुख में मजबूत बनने की सीख दी जाती है। लेकिन मृत्यु या प्रिय से बिछुड़ना जैसे कुछ शोक ऐसे हैं, जिन्हें अगर ढंग से जिया नहीं गया, तो ये मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। कौन कितने दिनों तक दुख मनाएगा और किस तरह से, यह व्यक्ति के अनुसार अलग हो सकता है। मनोवैज्ञानिक अंशु दुबे के अनुसार, ऐसे में व्यवहार में कई परिवर्तन होते हैं। खाना छोड़ देना, डिप्रेशन में आ जाना या बार-बार भूख लगना आदि दुख के कारण व्यवहार में आया परिवर्तन ही होता है। मृत्यु के बाद तेरह दिन का शोक मनाने की परंपरा के पीछे एक कारण यह भी है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति साल-डेढ़ साल बाद भी अपने दुख में डूबा दिखाई देता है, तो फिर निश्चित रूप से उसे मदद की जरूरत है। अगर वह व्यक्ति खुद मदद नहीं मांग रहा तो आसपास वालों को उसकी मदद करनी चाहिए।
बांटने से कम होता है दुख:- वर्षों से लोग दुख बांटने की सलाह देते हैं। दुख को कह देने से यह काफी कुछ कम हो जाता है और आपको उबरने में मदद मिलती है। दुख हो, खुशी हो, निराशा हो या अन्य कोई भी तीव्र उठती भावनाएं, उन्हें बाहर निकाल देने से उनका तनाव कम हो जाता है और व्यक्ति को खुद पर नियंत्रण पाने में आसानी होती है। अपना दुख व्यक्त करने का हर एक का अपना तरीका होता है। कोई बार-बार उस पर बात करना चाहता है। कोई डायरी और कविताएं लिखना चाहता है।
दूसरे खुशी से करते हैं मदद:- आजकल यह बात बड़ी पुख्ता तरीके से कही जाती है कि लोगों को अपनी ही चिंता होती है, दूसरों के दुख से कोई मतलब नहीं होता। पर यह सच नहीं है। आज भी दुख में लोग आपकी सहायता खुशी-खुशी करेंगे। इसीलिए दुख में अपनी जिम्मेदारियों बांट दें। लोग आपकी मदद जरूर करेंगे।
यथार्थ से नाता जोड़े रखिए:- चाहे ब्रेकअप का दुख हो, तलाक का या मृत्यु का। ऐसे कुछ मौके जरूर आते हैं, जब आपको भी अपना दिल मजबूत करना पड़ेगा। हो सकता है कि कोई व्यक्ति, कोई सामान, कोई विशेष जुमला या ऐसी ही कोई चीज आपको आपसे दूर जा चुके लोगों की याद अचानक वापस ले आए। ऐसे में दिल में उमड़ते दुख को आपको खुद ही शांत करना होगा। इसका सबसे अच्छा तरीका है, यथार्थ। ऐसे में खुद को सच्चाई बताइए कि अब वे आपकी वर्तमान जिंदगी का हिस्सा नहीं हैं। वर्तमान स्थिति से आप ही खुद को रूबरू करवा सकती हैं।
काउंसलिंग से होगा फायदा:- गहरे दुख के दिनों में, विशेषकर मृत्यु के शोक से अगर आप उबर ही नहीं पा रही हैं, आप अकेली हैं या फिर कुछ ऐसी बातें हैं, जो आप किसी को बता नहीं सकतीं, तो फिर ऐसी स्थिति में काउंसलर की सहायता लें। काउंसलिंग के दौरान आपको निराशा को खुद ही मैनेज करना सिखाया जाएगा।
जोखिम भरे कामों से बचें:- हम गहरे दुख के दिनों में अपनी रोजमर्रा की जिंदगी को सही ढंग से चलाए रखने की पुरजोर कोशिश करते हैं। लेकिन अंशु दुबे कहती हैं, दुख को तुरंत ही भूलने की कोशिश करना गलत है। ऐसे समय में मन इतना अशांत होता है कि गहन एकाग्रता के कामों में गलतियां होने की आशंका ज्यादा हो जाती है। महत्वपूर्ण कामों को कुछ समय तक हाथ में ना लें, वरना गलती होने पर आपका तनाव दोगुना हो जाएगा।