एनसीईआरटी की किताबों में, हिन्दू धर्म की गलत तस्वीर पेश करने का आरोप
May 22, 2017
नई दिल्ली, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के कार्यकाल में तैयार की गयी राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद की किताबों में हिन्दू धर्म को विकृत किये जाने के आरोप लगे हैं। ये आरोप राष्ट्रीय इतिहास अनुसंधान एवं तुलनात्मक अध्ययन केन्द्र के अध्यक्ष नीरज अत्रि और इस केन्द्र के निदेशक मुनीश्वर ए सागर द्वारा लिखित पुस्तक ब्रेनवाश्ड रिपब्लिक में लगाये गये हैं। इस पुस्तक का विमोचन पिछले दिनों राज्यसभा के मनोनीत सदस्य डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने किया।
इस पुस्तक की भूमिका भी डॉ. स्वामी ने ही लिखी है। पुस्तक में लेखकद्वय ने आरोप लगाया है कि एनसीईआरटी की कक्षा छठी से लेकर बारहवीं तक की इतिहास की किताबों का अध्ययन करने से पता चलता है कि हिन्दू धर्म को विकृत कर छात्रों के लिए भारत के इतिहास के बारे में एक गलत तस्वीर पेश की गयी है, जो पूर्वाग्रह से ग्रसित है।
इन पुस्तकों में वस्तुपरक ढंग से तथ्यों को पेश नहीं किया गया है और जिन तथ्यों को शामिल किया गया है, उन्हें भी तोड़ मरोड़कर पेश किया गया है। लेखकद्वय ने एक सौ से अधिक आरटीआई डालकर इन किताबों के बारे में एनसीईआरटी से स्पष्टीकरण भी मांगा है और एनसीईआरटी के जवाबों को इस पुस्तक में शामिल भी किया है तथा इन जवाबों पर लेखकों ने अपनी ओर से टिप्पणी भी लिखी है।
चार सौ एकतीस पृष्ठ की इस पुस्तक के नौ अध्यायों में भारतीय इतिहास के बारे में एनसीईआरटी की किताबों में दिये गये विवरणों का खंडन भी किया गया है और आरोप लगाया गया है कि इन किताबों में भारतीय राजा-महाराजाओं की तो आलोचना की गयी है लेकिन मुस्लिम शासकों की आलोचना नहीं की गयी है और उन्हें बेहतर प्रशासक बताया गया है। साथ ही ब्राह्मणवाद की भत्र्सना की गयी है और इस तरह देश के इतिहास को गलत रूप में पेश किया गया है तथा वेद, महाभारत और रामायण की आलोचना की गयी है।
पुस्तक में आरोप लगाया गया है कि इतिहास की इन किताबों में इस्लाम और ईसाइयत की तारीफ की गयी है जबकि हिन्दू धर्म को कई तरह की सामाजिक बुराईयों की जड़ बताया गया है। लेखकों ने दावा किया है कि महमूद गजनवी से लेकर औरंगजेब तक को न्यायप्रिय बताया गया है और तैमूरलंग को महान बताया गया है जबकि विजयनगर साम्राज्य को महत्व नहीं दिया है जबकि यह साम्राज्य बहुत बड़ा था। किताब में यह भी दावा किया गया है कि एनसीईआरटी की इतिहास की पुस्तकों के लेखकों ने प्राचीन भारत को गुलामी प्रथा और शोषण से भी जोड़ा है जबकि वे तुर्कियों और अरब हमलावरों के अत्याचारों के प्रति मौन हैं।
पुस्तक में यह भी दावा किया गया है कि उन्नीसवीं सदी की महान समाज सुधारक और संस्कृत विदुषी पंडिता रमाबाई ने हिन्दू धर्म की जो आलोचना की है, वह दरअसल हिन्दूवाद पर आरोप नहीं बल्कि कुप्रथाओं और आम जनधारणाओं की आलोचना है लेकिन एनसीईआरटी की आठवीं कक्षा की किताब में बताया गया है कि हिन्दूवाद महिलाओं को लेकर दमनकारी है। पुस्तक में यह भी दावा किया गया है कि संस्कृत विशिष्ट जन की भाषा थी और ये विशिष्ट जन ब्राह्मण थे लेकिन इस अवधारणा के समर्थन में कोई ऐतिहासिक तथ्य नहीं पेश किया गया है। इसमें यह भी दावा किया गया है कि एनसीईआरटी की किताबों के लेखकों ने अल बरनी के मुख से ऐसी बातें कही हैं, जो उसने कभी कही नहीं थीं।