नयी दिल्ली, दुनिया भर में करीब एक दशक से केले की ‘पनामा विल्ट’ बीमारी से परेशान किसानों के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने इस समस्या से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर दिया है और इस रोग पर प्रभावकारी नियंत्रण के लिए जैविक फफूंदनाशक दवा के व्यावसायिक उत्पादन का लाइसेंस जारी कर दिया गया है ।
वर्षो के अथक प्रयास के बाद भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के केंद्रीय मृदा लवणता क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र, करनाल, हरियाणा एवं केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ, उत्तर प्रदेश ने वैश्विक स्तरीय तकनीक ‘फ्यूजीकांट प्रौद्योगिकी’ को विकसित किया है और इसके व्यावसायिक उत्पादन के लिए एक अंतरराष्ट्रीय निजी कम्पनी को इसका लाइसेंस जारी किया है । इस दवा से फिलीपी न्स और अफ्रीकी देशों में पनामा विल्ट बीमारी पर नियंत्रण पाया जा सकेगा ।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (भाकृअनुप) महानिदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्रा ने वैज्ञानिकों के वैश्विक स्तरीय तकनीक विकसित करने के प्रयासों की सराहना की है। उन्होंने कहा कि ‘सार्वजनिक-प्राइवेट-किसान भागीदारी’ के सच्चे प्रतिनिधि के रूप में प्रौद्योगिकी विकास प्रक्रिया, जिसे प्रलेखित और उजागर करने की आवश्यकता है।
खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार, ट्रॉपिकल रेस 4 (टीआर-4) रोग सभी प्रकार के केले के पौधों की बीमारियों के लिए सबसे विनाशकारी है । वर्तमान में इस महामारी से कैवेंडिश केले के विलुप्त होने का खतरा है, जो विश्व के केले के 99 प्रतिशत क्षेत्रफल में है। करीब 40 अरब डॉलर के वैश्विक केला उद्योग में भारत से विश्व के विभिन्न देशों को बड़ी मात्रा में इसका निर्यात होता है। टीआर-4 स्ट्रेन केले की अन्य किस्मों को भी प्रभावित करता है ।
कई देशों में केला प्राथमिक खाद्य स्रोत हैं इसके बावजूद सन् 2010 से टीआर-4 दुनिया भर के प्रमुख देशों में फैल गया है। इस बीमारी से लड़ने के लिए सीमित ज्ञान और प्रबंधन मॉडल तथा संसाधनों की कमी के कारण यह दुनिया भर में चिंता का विषय बनता जा रहा है। वर्तमान में दुनिया में इस बीमारी का कोई व्यावहारिक समाधान नहीं है, जो न केवल फसलों बल्कि किसानों के लिए एक बड़ा खतरा है। कई स्थानों पर लोगों की आजीविका पूरी तरह से केले की खेती पर निर्भर करती है।
आईसीएआर-फ्यूजीकांट एक जैव फफूंदनाशक समाधान है जो वैश्विक स्तर पर कैवेंडिश केले को प्रभावित करने वाले पनामा विल्ट (टीआर-4) रोग से लड़ता है और 90 प्रतिशत तक उत्पादन नुकसान को कम कर सकता है तथा हजारों किसानों की आजीविका बचाने में मदद कर सकता है।
भारत के सबसे बड़े फल उत्पादकों और निर्यातकों में से एक, इनोटेरा इंडिया ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के साथ कल इस लाइसेंस समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं । बायोपेस्टीसाइड, एक नई तकनीक पर आधारित है जो दुनिया भर में लाखों टन केले की फसलों के विनाश के लिए जिम्मेदार घातक कवक रोग को सीधे लक्षित करता है। इनोटेरा ने वैश्विक स्तर पर बड़े पैमाने पर उत्पादन और बिक्री के लिए आईसीएआर की तकनीक का गैर-अनन्य लाइसेंस प्राप्त किया है। इनोटेरा की रणनीति व्यापक समाधान विकसित करने की दिशा में पहला कदम है, जो केवल रोग के प्रसार को रोकने के बजाय पौधों के स्वास्थ्य को प्रदान करता है।
समझौते के अवसर पर केला अनुसंधान एवं विकास विशेषज्ञ और केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान (सीएसएसआरआई, आरआरएस) के प्रमुख डॉ. टी. दामोदरन और केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (सीआईएसएच), लखनऊ के निदेशक डॉ. एस. राजन ने फ्यूजीकांट तकनीक के विकास टीम का नेतृत्व किया।
इनोटेरा के लिए ऑपरेशन क्रॉप्स इंडिया के प्रमुख डॉ. अनूप करवा ने बताया कि “इनोटेरा फ्यूजीकांट“ को लाइसेंस देने और दक्षिण एशिया में हमारे खेतों में नियोजित परीक्षण करने में वे पहला प्रस्तावक बनकर खुश हैं क्योंकि टीआर-4 के खिलाफ एक लागत प्रभावी और स्केलेबल समाधान है। यह तकनीक वैश्विक कृषक समुदाय, विशेष रूप से इस बीमारी से बुरी तरह प्रभावित छोटे और मध्यम जोत वाले किसानों के लिए वरदान है। हम इस तकनीक के साथ 90 प्रतिशत तक उत्पादन घाटे को कम करने की उम्मीद करते हैं, जिससे किसानों को उपज बढ़ाने में मदद मिलेगी और वर्षों तक केले की फसल की गुणवत्ता लगातार बनी रहेगी। आईसीएआर-फ्यूजीकांट ने बिहार और उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर किसानों के प्रक्षेत्र में आशाजनक परिणाम दिखाए हैं और यह पर्यावरण के लिए एक स्थायी समाधान साबित हुआ है।
इस जैविक फफूँदीनाशक के विकास और बड़े पैमाने पर अपनाने से साल दर साल पनामा विल्ट रोग के कारण फसल के नुकसान से प्रभावित हजारों केला उत्पादक किसानों की आजीविका बच जाएगी। फ्यूजीकांट व्यावसायीकरण के उन्नत चरणों में है और इसे केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड (सीआइबी), भारत सरकार से विनियामक अनुमोदन भी प्राप्त हुआ है।