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क्या अबकी बार, राष्ट्रीय लोकदल बचा पायेगा, अपना गढ़ छपरौली

ajit_146459658078_650x425_053016015409मेरठ, कभी पश्चिमी उत्तर प्रदेश की प्रमुख राजनीतिक ताकत रहे राष्ट्रीय लोकदल के लिए यह चुनाव बहुत ही अहम है। अपना सियासी वजूद बचाने के लिए रालोद ने गठबंधन की पींगें भी बढ़ाई, लेकिन अब अकेले चुनाव लड़ना पड़ रहा है।

रालोद के सामने अपनी सबसे सुरक्षित छपरौली सीट को बचाने की चुनौती है। वेस्ट यूपी में छपरौली को रालोद का सबसे सुरक्षित किला माना जाता है। यहां आज तक रालोद का कोई भी प्रत्याशी विधानसभा का चुनाव नहीं हारा है। पहले पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह यहां से लगातार विधायक चुने जाते रहे। उनके लोकसभा में जाने के बाद 1977 में यहां से नरेंद्र सिंह कई बार विधायक चुने गए। चौधरी चरण सिंह की बेटी सरोज वर्मा और रालोद मुखिया अजित सिंह भी यहां से विधायक चुने गए।

2014 के लोकसभा  चुनावों में रालोद प्रत्याशी अजित सिंह को छपरौली विधानसभा चुनावों में भी हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में 2017 के विधानसभा चुनावों में अजित सिंह के सामने अपने गढ़ छपरौली को बचाने की कठिन चुनौती आ खड़ी है। लगातार बढ़ रही बसपा की ताकत छपरौली विधानसभा पर भले ही रालोद का दबदबा रहा हो, लेकिन यहां पर बसपा प्रत्याशियों की ताकत चुनाव दर चुनाव बढ़ती जा रही है। 2002 से लेकर 2012 के चुनावों में बसपा प्रत्याशियों का वोट बढ़ता ही गया। 2012 के चुनावों में बसपा प्रत्याशी को 47823 वोट मिले। इस बार यहां से रालोद ने सहेंद्र रमाला, भाजपा ने सत्येंद्र तुगाना, बसपा ने राजबाला, सपा ने मनोज चौधरी को प्रत्याशी बनाया है। कुल मतदाता: 316983 पुरुष मतदाता: 178505 महिला मतदाता: 138452 अन्य: 26 छपरौली सीट का सियासी इतिहास: वर्ष 1937-74 में चौधरी चरण सिंह विजेता, वर्ष 1977 में नरेंद्र सिंह, 1980 में नरेंद्र सिंह, 1985में सरोज वर्मा, 1987 में नरेंद्र सिंह, 1989 में नरेंद्र सिंह, 1991 में डाॅ. महक सिंह, 1993 में नरेंद्र सिंह, 1996 में गजेंद्र मुन्ना, 2002 में डाॅ. अजय कुमार, 2007 में डाॅ. अजय तोमर तथा 2012 में वीरपाल राठी।

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