नई दिल्ली, ताजा जारी क्यूएस वल्र्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग्स 2016-17 की लिस्टिंग में इंडियन इंस्टीट्यूट्स ऑफ टेक्नोलॉजी ने अपना स्थान खो दिया। इस रैंकिंग की पुष्टि मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की ओर से किया गया है, जो लगातार पांचवे साल भी दुनिया के बेहतर संस्थानों में से एक है।
बंगलुरु की इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस भारत के सर्वोच्च संस्थानों में अव्वल है, लेकिन बेहतर 150 संस्थानों में इसका नाम नहीं है। अच्छी खबर यह है कि आइआइटी चेन्नई ने 250 संस्थानों में अपनी जगह बनाई है। भारतीय संस्थान इस बार इस तरह पिछड़े हैं कि जो पिछले साल ऊपर थे वे भी निचले पायदान पर खिसक गए हैं और 10 भारतीय संस्थानों में से 9 की रैंकिंग 700 में है
। शोध के प्रभाव (रिसर्च इंपैक्ट) कैटेगरी की बात करें तो दुनिया के टॉप 100 में मात्र चार भारतीय संस्थान हैं, जो कि पिछले साल पांच थे। आइआइटी चेन्नई आठ स्तर के गिरावट के साथ 101वें पायदान पर है। इस मामले में प्प्ब भारत का सबसे अच्छा रिसर्च इंस्टीट्यूट बना रहा इसे 11 वां रैंक दिया गया है। दुखद यह है कि भारत के सभी संस्थान शैक्षणिक और नियोक्ता दोनों ही मामलों में पिछड़ गए।
क्यूएस इंटेलिजेंस यूनिट के रिसर्च प्रमुख बेन सॉटर ने इस गिरावट के पीछे कई तथ्यों को कारण बताया। जिसमें से एक यह है कि भारत में पीएचडी शोधकर्ताओं की संख्या काफी कम है। साथ ही भारत काफी कम विदेशी पीएचडी शोधकर्ताओं को नियुक्त करता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि 700 से ऊपर के रैंक पर कोई भारतीय संस्थान नहीं है। क्यूएस इंटेलिजेंस यूनिट ने यह बताया कि विशेष निवेश – मानव और पूंजी – की जरूरत तभी सार्थक होती है यदि भारतीय संस्थानों में प्रतिस्पर्धा बनी रहे। इस लिस्टिंग में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी ने यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज को टॉप 3 में विस्थापित कर दिया है। इसका मतलब अमेरिकी संस्थान टॉप तीन में बने हैं।