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गांवों से ही बनता है शहर इसलिए कोई मसीहा नहीं

14jha23_14_10_2015 (1)-फिल्म ‘शहर मसीहा नहीं’ के कलाकार झाबुआ में

झाबुआ। अगले माह रिलीज होने वाली फिल्म ‘शहर मसीहा नहीं’ के निर्देशक, अभिनेता राजनकुमार व अभिनेत्री त्रिशा खान का कहना है कि गांवों से ही शहर बनता है। ग्रामीणों को यही संदेश देने के लिए वे झाबुआ भ्रमण कर रहे है। गांव में रहकर भी व्यक्ति बहुत कुछ कर सकता है। उसे अपना सामाजिक परिवेश स्वच्छ बनाते हुए जल संरक्षण, नशामुक्ति, जातिवाद व बालश्रम के खिलाफ सचेत रहना होगा।

मुंबई से आए इन कलाकारों को झाबुआ की फिजाएं काफी रास आई है। एक वर्ष तक दिल्ली में फिल्म का निर्माण करने के बाद सबसे पहले वे झाबुआ ही आए। वजह यह है कि अपनी फिल्म में उन्होंने झाबुआ जैसे गांव का ही चित्रण किया है। अवनेंद्र भारती के उपन्यास पर आधारित फिल्म ‘शहर मसीहा नहीं’ झाबुआ जैसे गांव की सच्चाई उजागर करेगी। साथ ही इसमें पानी बचाने का, नशा छोड़ने का, बालश्रम के विरोध का व जातिवाद जैसे सामाजिक मुद्दों पर ही एक सकारात्मक संदेश भी दिया जाएगा।

बंगाल में हिट

अभिनेत्री सुश्री खान ने बताया कि नौ बंगाली फिल्मों में वे काम कर चुकी है। मूलतः कोलकाता की ही रहने वाली है। अब उनका सफर बॉलीवुड में आरंभ हो रहा है। वे मुंबई में ही रहने लगी है। बंगाल में उनकी फिल्मों को अच्छी सफलता मिली थी। 15 वर्ष की आयु में ही उन्हें काम मिलने लगा था। कलाकारों के प्रति झाबुआ के लोगों का स्नेह अभूतपूर्व है।

पद्मश्री के लिए नामांकित

निर्माता व अभिनेता श्री कुमार ने बताया कि कला संस्कृति के क्षेत्र में कई पुरस्कार उन्हें प्राप्त हो चुके है। राष्ट्रपति प्रणव मुकर्जी के समक्ष भी वे अपनी प्रस्तुति दे चुके है और उनका हौसला बढ़ाने के लिए स्वयं राष्ट्रपति ने उनके पास आकर पीठ थपथपाई थी। चार्ली चैपलिन के रूप में अभिनय करने के लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में उनका नाम दर्ज हुआ था। फिलहाल पद्मश्री पुरस्कार के लिए उनका नामांकन हुआ है। 80-85 कलाकारों को लेकर उन्होंने ‘शहर मसीहा नहीं’ फिल्म बनाई है। अब अगली फिल्म की शूटिंग वे झाबुआ में ही करेंगे। इस दौरान स्थानीय बाल कलाकार निहारी चौहान ने फिल्म ‘शहर मसीहा नहीं’ का टायटल सांग भी पत्रकारों के समक्ष प्रस्तुत किया।