लखनऊ, समाजवादी पार्टी में बीते कई दिनों से चल रहे महासंग्राम का आखिरकार सोमवार को अन्त हो गया। निर्वाचन आयोग ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पक्ष में फैसला सुनाया और उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष माना। आयोग के इस फैसले के बाद अब अखिलेश यादव साइकिल चिन्ह पर अपने प्रत्याशी उतार सकेंगे।
इस फैसले की जानकारी के महज चन्द मिनटों पर ही मुख्यमंत्री के सरकारी आवास 05 कालीदास मार्ग पर अखिलेश समर्थकों का जमावड़ा लग गया और उन्होंने मुख्यमंत्री के समर्थन में नारेबाजी भी की। चुनाव आयोग का यह फैसला मुलायम के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। जहां बेटा अपने पिता पर भारी पड़ा है, वहीं प्रो. रामगोपाल एक चाणक्य की भूमिका में नजर आये और मुलायम की नाक के नीचे से उनसे समाजवादी पार्टी का अध्यक्ष पद छीनने में कामयाब रहे।
इससे पहले आयोग में दोनों ही पक्षों ने अपने-अपने समर्थन में दस्तावेज सौंपे थे। मुलायम गुट जहां 01 जनवरी को बुलाये गए राष्ट्रीय अधिवेशन को ही असंवैधानिक बता रहा था, वहीं अखिलेश गुट ने इसका पूरी तरह से पार्टी के संविधान के अनुरूप बताया था। अखिलेश की ओर से रामगोपाल आयोग में हलफनामा दायर किया था, जिसमें सभी विधायकों, विधान परिषद सदस्यों, लोकसभा सदस्यों, राज्यसभा सदस्यों और डेलीगेट के हस्ताक्षर थे। इन सभी का अलग-अलग हलफनामा भी पेश किया गया था। करीब डेढ़ लाख पन्नों के इस दस्तावेज की जांच के आधार पर ही चुनाव आयोग ने अपना फैसला सुनाया है।
रामगोपाल पहले से ही कहते रहे कि पार्टी के 90 प्रतिशत लोग अखिलेश यादव के साथ हैं, इसलिए वही असली समाजवादी पार्टी है,जबकि मुलायम के साथ उनके गुट के शिवपाल यादव और अमर सिंह सहित कुछ गिनती के कुछ लोग इसके गलत ठहरा रहे थे। एक तरह से देखा जाए तो सबूतों और तथ्यों की इस रेस में अखिलेश अपने पिता और चाचा को पीछे छोड़ते हुए आगे निकल गए और इनाम स्वरूप उन्हें साइकिल मिली। खास बात है कि सोमवार दोपहर को ही सपा के प्रदेश मुख्यालय में अखिलेश यादव के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद वाली नेम प्लेट लगा दी गई थी।