चिकनगुनिया बुरी तरह से तोड़ के रख देने वाला वायरल बुखार है, लेकिन जानलेवा बुखार नहीं है। यह बीमारी मादा एडिस मच्छर के काटने से होती है। चिकनगुनिया के लक्षण तीन से सात दिनों के अंदर बुखार और जोड़ों के दर्द के रूप में दिखाई देने लग जाते हैं। इसके अलावा सिर दर्द, मांसपेशियों में दर्द, जोड़ों में सूजन और लाल चकत्ते जैसे लक्षण भी नजर आते हैं। चिकनगुनिया जानलेवा नहीं है। इसके पीड़ित एक सप्ताह के अंदर ठीक महसूस करने लगते हैं। लेकिन कुछ लोगों में जोड़ों का दर्द एक महीने तक रह सकता है। इसलिए चिकनगुनिया व डेंगू से बचने के लिए मच्छरों के कटने से बचना जरूरी है। उन्होंने बताया कि नवजात बच्चे जो जन्म से पीड़ित हों, 65 साल से ज्यादा उम्र के लोग, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज या दिल के रोगों वाले लोगों को अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए। एडिस मच्छर साफ पानी में पनपता है, इसलिए पानी जमा करने वाले बर्तनों और टैंक के साथ ही फालतू सामान जैसे बाल्टियों, बर्तनों, टायरों, फूलदानों आदि में मच्छर की जांच करते रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस मच्छर के काटने का समय सुबह जल्दी और देर शाम होता है, लेकिन अगर रात में घर में लाइट जलती हो तब भी यह मच्छर काट सकता है, इसलिए मच्छररोधी प्रयोग करना जरूरी है। अब तक चिकनगुनिया वायरस को रोकने के लिए कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। दवाओं से लक्षणों को कम किया जा सकता है। पीड़ितों को बहुत ज्यादा आराम करने और तरल आहार लेते रहने की सलाह दी जाती है। एस्प्रिन और दूसरे नॉन-स्टीरॉयडल एंटी इनफ्लेमेट्री दवाएं नहीं लेनी चाहिए जब तक कि इस बात का भरोसा न हो जाए कि पीड़ित को डेंगू नहीं है, क्योंकि दोनों बीमारियों के लक्षण एकसमान हैं लेकिन इन दवाओं से डेंगू में ब्लीडिंग हो सकती है। एचसीएफआई और आईएमए ने चिकनगुनिया के समय आर्थराइटिस में देखभाल के लिए निर्देश जारी किए हैं
चिकनगुनिया के साथ होने वाली ओस्टियोअर्टिकुलर समस्याएं एक से दो सप्ताह में कम हो जाती हैं। 20 प्रतिशत मामलों में वह कुछ सप्ताह में ठीक हो जाती हैं और 10 प्रतिशत से कम मामलों में यह महीनों तक चलती है। 10 प्रतिशत मामलों में सूजन चली जाती हैय दर्द कम हो जाता है, लेकिन किसी अन्य बीमारी के साथ कुछ महीनों बाद यह फिर आ सकती है। हर बार उन्हीं जोड़ों में सूजन आती है, हल्का दबाव से रक्त बहाव होता है और यह लक्षण बुखार कम होने के बाद एक से दो सप्ताह तक रहते हैं।
लंबी बीमारी में इम्यूनॉलॉजिकल आयटियॉलॉजी होने की संभावना होती है, स्टिरायड्स का एक छोटा कोर्स लाभदायक हो सकता है। -सभी प्रतिकूल हालात की निगरानी के लिए सावधानी रखनी चाहिए और प्रतिकूल प्रभावों को रोकने के लिए हमेशा के लिए दवाओं का प्रयोग नहीं करते रहना चाहिए। -चाहे एनएसएआईडीएस से लक्षणों में राहत मिल जाती है, लेकिन रीनल, गैस्ट्रोइनटेस्टिनल, कार्डियक और बोन मैरो के विषैलेपन के प्रति भी सावधानी आवश्यक है।
जोड़ों के दर्द को कम करने के लिए कोल्ड कंप्रैसेस लाभदायक पाए गए हैं। -चिकनगुनिया से होने वाली अपंगता का अंदाजा और निगरानी स्टेंडर्ड स्केल से लगाया जा सकता है। समय पर फिजियोथैरेपी करवाने से कांट्रैक्चर्ज और डीफॉर्मिटीज के मरीज को लाभ मिलता है। वजन ना डालने वाले व्यायाम करने की सलाह दी जाती है जैसे कि सिर के पीछे का हिस्सा हथेली से छूना, ऐड़ी के धीमे व्यायाम, पुली के सहयोग से होने वाले व्यायाम, योगा के हल्के आसन आदि। गंभीर एवं अपंगता वाले कंट्रेक्चर्ज में सर्जरी के लिए कहा जा सकता है। देख रेख की योजना बड़े हस्पतालों में बनाई जा सकती है, लेकिन उसके बाद की देखभाल और लंबे समय की देखभाल घर पर या प्राइमरी हैल्थ सैंटर स्तर पर किया जा सकता है। विस्तारित अपंगता मूल्यांकण के बाद कामकाजी सहायता प्रदान की जानी चाहिए।