बेंगलुर, डोकलाम सेक्टर में भारत और चीन की सेना के बीच जारी गतिरोध पर वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल बिरेंदर सिंह धनोआ ने कहा है कि भारतीय वायुसेना किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए तैयार है। वायुसेना प्रमुख ने डोकलाम सेक्टर में जारी गतिरोध पर पूछे गए सवाल का उत्तर में यह बात कही। एयर चीफ मार्शल इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एरोस्पेस मेडिसीन द्वारा आयोजित 56वें वार्षिक सम्मेलन का उद्घाटन करने के लिए बेंगलुर आए हुए हैं।
उन्होंने जुलाई में एक साक्षात्कार के दौरान कहा था कि 1999 में हुए कारगिल युद्ध के बाद के समय में वायुसेना की क्षमता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। वायुसेना प्रमुख ने बताया था कि अब वायुसेना के पास हर मौसमी परिस्थिति में दिन और रात काम करने की क्षमता है। इन 18 वर्षों में वायुसेना की क्षमता में यह सुधार उल्लेखनीय है। कार्यक्रम के दौरान धनोआ ने कहा कि चिकित्सकीय आधार पर पायलट को काम से अलग किए जाने से वायुसेना को भारी नुकसान होता है।
इसका संबंधित व्यक्ति के मनोबल पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। उन्होंने कहा, आपका वैज्ञानिक काम चिकित्सकीय दोष से उबरे विमान चालकों में उम्मीद जगा सकता है। वे सक्रिय रूप से उड़ान भरने के लिए वापस लौटने के बारे में सोच सकते हैं।ऐसे कथित संतों-बाबाओं के कारनामों पर सवाल उठाने से पहले यह भी देखना होगा कि आखिर ये लोग इतनी ताकत कहां से पाते हैं। शुरुआत इन्हें किसी आश्रम या महंत की गद्दी मिलने से होती है, जिससे जुड़े भक्तगण-अनुयायी आंख मूंदकर उनकी सेवा करते हैं। ये शिष्य अपने गुरु को भगवान और देश से ऊपर का दर्जा देते हैं।
यही नहीं, कुछ कथित राजनेता भी वोटबैंक के लालच में इनके चरणों में लोट लगाते रहे हैं, जिससे कथित संतों-बाबाओं का कारोबार दिन-दूना, रात-चौगुना बढ़ता जाता है। बाबा राम रहीम की जो ताकत आज दिख रही है, उसमें सिर्फ जनता की भूमिका नहीं है बल्कि कुछ राजनीतिक दलों का भी है, जिन्होंने विधानसभा चुनावों में उनके लाखों अनुयायियों का समर्थन पाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। यही वजह है कि कोई कानूनी मसला होने पर ये बाबा और उनके अनुयायी राजनीतिक संरक्षण की उम्मीद करते हैं और हर किसी को धौंस दिखाते हैं कि सत्ता में बैठे लोगों की वजह से कोई उनका बाल भी बांका नहीं कर सकता।
बाबा राम रहीम के ताजा वाकये के बाद यह सवाल देश और जनता को लंबे समय तक मथ सकता है कि देश में ऐसे स्वार्थी और ढोंगी बाबाओं पर कैसे अंकुश लगाया जाए, जो कथित संतई के बल पर एक बड़ा साम्राज्य खड़ा कर लेते हैं और अपने अंधभक्त अनुयायियों में बड़ी सफलता से यह भ्रम रोप देते हैं कि वे एक समानांतर सत्ता या सरकार चला रहे हैं। तमाम तरह के अपराध करने के बाद बाबा-संत बने और बाबा बनकर गद्दी संभालने के बाद कई अपराध करने वाले इस किस्म के बाबाओं का अभ्युदय यह सोचने को मजबूर करता है कि आखिर हमारी जनता इतनी धर्मभीरू और अंधविश्वासी क्यों है कि वह इनकी काली करतूतों को जानते-बूझते हुए भी परदा डालने की कोशिश करती है। इसमें कुछ दोष तो शिक्षा व्यवस्था और सामाजिक अनुशासनों का है।