जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में पिछले दो दशकों से कविताएं सुनाकर संघर्ष के लिये प्रेरित करने वाले जनकवि रमाशंकर ‘विद्रोही’ नहीं रहे। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में पिछले दो दशकों में आने वाले हजारों छात्र उनकी कविता सुनकर संघर्ष करना सीखे होंगे। उनकी चर्चित कविताओं में ‘जब भी किसी गरीब आदमी का अपमान करती है, ये तुम्हारी दुनिया, तो मेरा जी करता है, कि मैं इस दुनिया को उठाकर पटक दूं।’, ‘मैं भी मरूंगा और भारत के भाग्य विधाता भी मरेंगे लेकिन मैं चाहता हूं कि पहले जन-गण-मन अधिनायक मरें, फिर भारत भाग्य विधाता मरें ’, ‘आज तो चाहे कोई विक्टोरिया छाप काजल लगाए या साध्वी ऋतंभरा छाप अंजन लेकिन असली गाय के घी का सुरमा, तो नूर मियां ही बनाते थे…’ , ‘मैं किसान हूं आसमान में धान बो रहा हूं, कुछ लोग कह रहे हैं कि पगले, आसमान में धान नहीं जमा करता, मैं कहता हूं पगले, अगर जमीन पर भगवान जम सकता है तो आसमान में धान भी जम सकता है।..’ आदि हैं.एक बार कड़कड़ाती सर्दी में विद्रोही जी को नंगे पैर देख जेएनयू में पढ़ रहीं एक विदेशी महिला साथी ने पूछ लिया कि “विद्रोही जी आपके जूते कहां गए?” तो विद्रोही जी ने कहा कि दिल्ली पुलिस को फेंककर मार दिया। अभावों के साथ जीते हुए भी संघर्षों वाले तेवर विद्रोही जी नहीं छोड़ते थे।
सोशल मीडिया पर जनकवि रमाशंकर ‘विद्रोही’को श्रद्धांजलि देने वालों का सैलाब लगा है. साथ ही सोशल मीडिया पर विद्रोही की कविताओं का उत्सव भी जारी है। सी.दिलीप मंडल के अनुसार -सुनो जेएनयू के प्रोफेसरों, रमाशंकर यादव नाम का वह मासूम लड़का सुल्तानपुर, यूपी से पढ़ाई करने के लिए जनरल मेरिट से सेलेक्ट होकर जेएनयू, दिल्ली आया था। तुमने रमाशंकर यादव को पढ़ाई पूरी नहीं करने दी। निकाल बाहर किया उसे। वह अपनी डिग्री कभी नहीं ले पाया, जिसे हासिल करने के लिए वह दिल्ली आया था। क्यों प्रोफेसर, क्या विद्रोही प्रतिभा से डरते थे तुम? अपने निठल्लेपन का एहसास था तुम्हें? अपने बौद्धिक बौनेपन का भी? या किसी और बात की घृणा थी? अगर रमाशंकर में कोई समस्या थी, तो उसका समाधान क्यों नहीं किया? उल्टे उन्हें जेएनयू से खदेड़ने की साजिश की। एक हद तक कामयाब भी हुए। लेकिन यह तो तुम्हें दिख रहा होगा प्रोफेसर कि एक तरफ अपार लोकप्रियता बटोरे विद्रोही की रचनाओं हैं, और दूसरी तरफ हैं तुम्हारी किताबें, जो सिलेबस में जबरन न पढ़ाई जाएं, तो चार लोग उन्हें नहीं पढ़ेंगे। विद्रोही बिना डिग्री के तुमसे कोसों आगे निकल गया। छूकर दिखाओ। लिखो वैसी एक रचना… है दम?
स्वराज आंदोलन के संयोजक योगेंद्र यादव ने जनकवि रमाशंकर ‘विद्रोही’ को श्रद्धांजलि देते हुये कहा कि जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय के ‘विद्रोही’ भाई नहीं रहे। जीवन भर आंदोलनों के बीच रहे, आंदोलनधर्मी कविता रचने और बांचने वाले रमाशंकर भाई कल ‘ऑक्युपाई यूजीसी’ के मार्च में भी शामिल हुए, उसी दौरान उनकी तबीयत खराब हुई और वह यकायक चल बसे। जब 1981 में मैं जेएनयू पंहुचा तो वह पहले से वहां थे, और उसके बाद से वह जेएनयू में ही रहे। श्रद्धांजलि।