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दलितों पर अत्याचार बढ़ने के ये हैं मुख्य कारण…

लखनऊ, पिछले कुछ सालों मे,  दलितों पर अत्याचार बढ़ने के बहुत से समाचार आये दिन सुनायी पड़ने लगें हैं। दलितों पर अत्याचार की ये घटनायें अचानक क्यों बढ़ गई हैं। ये चिंता और अध्ययन का विषय है।

समाज में दलितों पर अत्याचार बढ़ने का कारण यह है कि अब दलित सवर्ण समाज और व्यवस्था को चुनौतो देने लगे हैं जिसके कारण ऊँची जाति के लोग उस पर दमन करने लगे हैं। रोहित वेमुला और जेएनयू के मुथु कृष्णन की आत्महत्या इसका प्रमाण है। यह विचार हैं राज्यसभा के पूर्व मनोनीत सदस्य एवं प्रसिद्ध दलित चिन्तक तथा अर्थशास्त्री प्रो.भालचंद्र मुंगेकर के। 

उन्होंने कहा कि रोहित वेमुला की आत्महत्या को लेकर गठित एक समिति के वे सदस्य होने के नाते वह अपने अनुभवों के आधार पर ये बाते कह रहे हैं। मुंगेकर ने कहा कि बाबा साहब ने इस संचयन में अपने लेखों में देश की हर समस्याओं पर विचार किया है लेकिन देश में कम्युनिस्ट आन्दोलन भी इसलिए विफल हो गया कि उसने जाति के सवाल को कभी गंभीरता से लिया ही नहीं।

उन्होंने हिन्दुत्ववादी ताकतों से भी दलितों को सतर्क रहने की सलाह दी और दलित बुद्धिजीवी वर्ग को भी सत्ता के प्रलोभनों से बचने की सलाह दी, क्योंकि मौजूदा सत्ता उनका इस्तेमाल कर रही है। इस संचयन में अंबेडकर ने स्त्री मुक्ति संसदीय लोकतंत्र समान मानवाधिकारों के अलावा हिन्दू दर्शन पर भी गंभीर अध्ययन किया है और क्रांतिकारी विचार व्यक्त किये हैं।

भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला के अध्यक्ष रहे श्री मुंगेकर ने कहा कि बाबा साहब न केवल हिन्दू धर्म बल्कि इस्लाम धर्म की कट्टरता के भी खिलाफ थे। हिन्दू धर्म की जड़ता एवं बुराइओं के खिलाफ थे, इसलिए उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार किया क्योंकि उनका मानना था कि हिन्दू धर्म जाति पर आधारित है और जब तक जाति का बंधन नहीं टूटेगा देश का विकास नहीं हो सकता है। भारतीय समाज में इतनी समानतायें है कि देश का आर्थिक विकास ही ठीक से नहीं हो पा रहा है इसलिए देश के सकल घरेलू उत्पाद को बढ़ाने के लिए सभी जातियों के लोगों को आर्थिक मुख्यधारा में लाना जरुरी है लेकिन आज भी बड़ी संख्या में दलित आदिवासी बेरोजगार हैं। अब तो विश्वविद्यालय में उनके साथ भेदभाव भी होने लगा है और वे प्रताड़ित किये जा रहे हैं।