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दस सिखों की हत्या में भाजपा सरकार द्वारा पुरस्कृत 47 पुलिसकर्मियों को अदालत ने ठहराया दोषी

court-561f6a24e54df_lयूपी,  25 साल पहले पीलीभीत में नानकमथा, पटना साहिब जैसे तीर्थस्थलों की तीर्थयात्रा से वापस लौट रहे 11 सिखों को उग्रवादी बताकर फर्जी मुठभेड़ में मारने के मामले में स्थानीय सीबीआई कोर्ट ने 47 पुलिसवालों को अपहरण, हत्या, हत्या का षड्यंत्र रचने जैसी संगीन धाराओं में दोषी करार दिया है। सीबीआई कोर्ट के विशेष न्यायाधीश लल्लू सिंह ने इस मुठभेड़ पर कई तरह के सवाल उठाते हुए इसे फ़र्जी करार दिया है. जबकि तत्कालीन प्रदेश की भाजपा सरकार ने मामले में अभियुक्त बनाए गए पुलिसकर्मियों को बचाने की हरसंभव कोशिश की थी। तत्कालीन कल्याण सरकार ने तो पीलीभीत के तब के पुलिस अधीक्षक आरडी त्रिपाठी समेत कथित मुठभेड़ में शामिल सभी पुलिसकर्मियों की सराहना करते हुए उन्हें पुरस्कृत भी किया था।

मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने पुलिसकर्मियों पर बेहद तल्ख़ टिप्पणी की और कहा कि प्रमोशन और पुरस्कार के लालच में इस घटना को अंजाम दिया गया.अदालत ने ये भी सवाल उठाया है कि यदि ये युवक चरमपंथी थे तो उनके पास सो कोई हथियार क्यों नहीं बरामद हुए और तीन अलग-अलग थाना क्षेत्रों में मुठभेड़ कैसे हुई? पुलिसवालों ने खुद को सही साबित करने के लिए बस यात्रियों की लिस्ट तक बदल दी थी। इतना ही नहीं, जो पुलिस के लोग एनकाउंटर में शामिल दिखाए गए थे, उनकी उस समय लोकेशन दूसरी जगह पर थी।

47 पुलिसवालों में से 20 को कोर्ट ने कस्टडी में लेकर जेल भेज दिया है। वहीं, 27 पुलिसवालों को कार्रवाई के दौरान हाजिर नहीं होने के चलते उनके खिलाफ एलबीडब्ल्यू जारी कर उनकी जमानतदारों को नोटिस जारी किया है। मामले में 4 अप्रैल को सजा सुनाई जाएगी। किसी एक मामले में एक साथ इतने पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराए जाने का ये शायद देश में पहला मामला है।

पीलीभीत में 12 जुलाई 1991 को पटना साहिब  से तीर्थयात्रियों का एक जत्था बस से लौट रहा था. बस मे 25 यात्री सवार थे। कछालाघाट पुल के पास पुलिस ने इनमें से दस यात्रियों को बस से ज़बरन उतार लिया और एक दिन बाद उन सभी की लाशें तीन अलग-अलग जगहों से मिलीं. पुलिस ने अपनी एफ़आईआर में इन सभी को चरमपंथी बताते हुए पुलिस पर हमला करने का आरोप लगाया लेकिन बाद में मारे गए लोगों के परिवारजनों ने आरोप लगाया कि मुठभेड़ फ़र्जी थी.  तत्कालीन  पीलीभीत के पुलिस अधीक्षक आरडी त्रिपाठी समेत कथित मुठभेड़ में शामिल सभी पुलिसकर्मियों की सराहना करते हुए उन्हें पुरस्कृत भी किया गया था।

15 मई 1992 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दायर याचिका की सुनवाई करते हुए मुठभेड़ की सीबीआई जांच के आदेश दिए. सीबीआई ने इस मामले में 57 पुलिसकर्मियों को अभियुक्त बनाया था जिनमें से दस की मुकदमे की सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गई.

 

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