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नई रणनीति के साथ चुनावी मैदान मे उतरने जा रही मायावती

Mayawati_Mumbaio_PTIलखनऊ, बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती नई रणनीति के साथ चुनावी मैदान मे उतरने जा रही है। 2009 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद से हुए कई राज्यों और यूपी में बसपा को शिकस्त ही हाथ लगी। इससे बसपा के मिशन को झटका लगा। इसके बाद से बसपा को जहां-जहां पार्टी में डेंट नजर आया, वहां-वहां मरम्मत का काम शुरू किया। बसपा के रणनीतिकार 2017 में होने वाले विधान सभा चुनाव को लेकर काफी आशावन्वित हैं।

लेकिन विपक्षी पार्टियों में खास तौर से भाजपा ने बसपा के कई नेताओं को पार्टी में शामिल किया है , जो बसपा की रणनीति को अमलीजामा पहनाने में अहम भूमिका निभाते थे। भाजपा इससे बसपा को नुकसान पहुंचा सकती है। भाजपा की इस रणनीति पर पानी फेरने के लिए बसपा सुप्रीमो मायावती ने कई नये फैसले किए हैं।

बसपा ने पुराने कांग्रेसी फार्मूले को अपनाने का फैसला लिया है जिस पर चलकर कांग्रेस ने दशकों भारत पर राज किया है। कांग्रेस की राजनीति दलित, ब्राहमण और मुस्लिम फार्मूले पर केंद्रित रही है, बसपा भी यू पी के विधान सभा चुनाव मे इसी फार्मूले पर फोकस करेगी। दलित समाज को बसपा से जोड़े रखने की जिम्मेदारी बसपा प्रमुख मायावती स्वयं उठायेंगी और किसी भी हालत मे दलित वोट को बीजेपी मे जाने से रोकेंगी।

इसके अलावा ब्राह्मणों समाज को लुभाने के लिए सतीश चंद्र मिश्र को जिम्मेदारी दी गई है। इसके तहत उन्होंने सुरक्षित सीटों पर ब्राह्मण समाज की रैलियां भी शुरू कर दी गई हैं। जिससे सुरक्षित सीटों पर ब्राह्मण समाज का वोट हासिल कर इन सीटों पर आसानी से जीत हासिल की जा सके। साथ ही भारी संख्या मे ब्राह्मणों को टिकट देने की भी योजना है।

मुस्लिमों को लुभाने के लिए दलित-मुस्लिम सोशल इंजीनियरिंग पर फोकस किया है। जिसकी कमान बसपा सुप्रीमो मायावती ने कद्दावर नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी के हाथों में दी है। पहली बार बसपा ने लगभग 150 सीटों पर मुस्लिमों को टिकट दिया है। इतनी संख्या में टिकट देने के पीछे बसपा की मंशा मुस्लिम समाज को यह संदेश देने की है कि असल शुभ चिंतक बसपा है, बाकी पार्टियां मात्र वोट के लिए ही ढोंग कर रही हैं।

बसपा के जोनल कोआर्डिनेटर ने कहा कि अखिलेश यादव सरकार बड़े-बड़े दावे करती है कि वह मुस्लिमों की सबसे बड़ी हितैषी पार्टी है। लेकिन बीते साढ़े चार साल के कार्यकाल में अखिलेश सरकार के दावों पर नजर डाले तो पता चलता है कि सिर्फ और सिर्फ दंगों के अतिरिक्त मुस्लिम समाज को कुछ नहीं मिला। न तो प्रशासनिक और न ही सियासी प्रतिनिधित्व मिला। सूबे में कायम जंगलराज के कारण जनता त्रस्त है। कानून का राज स्थापित करने में मात्र बसपा ही एक मात्र विकल्प है। उन्होंने बताया कि अगले माह से सपा के असली चेहरे को दिखाने के लिए बसपा मुस्लिम समाज और जनता को जागरूक करने का अभियान चलाएगी। इसमें मुस्लिम समाज की अपेक्षा और उपेक्षा पर फोकस किया जाएगा।

 

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