नई दिल्ली, 68 वर्षीय पी ए संगमा का आज दिल्ली में दिल का दौरा पड़ने के कारण निधन हो गया। वह नौ बार लोकसभा के सदस्य रहे।संगमा का जन्म मेघालय के एक छोटे से आदिवासी गांव में हुआ था। एक सितंबर 1947 को पश्चिमी गारो हिल्स जिले के खूबसूरत छपाहाती गांव में पैदा हुए पूर्णो अजितोक संगमा कांग्रेस पार्टी में बतौर कार्यकर्ता शामिल होने से पूर्व एक व्याख्याता, वकील और पत्रकार थे । सेंट एंथनी कालेज से स्नातक करने के बाद संगमा ने असम के डिब्रूगढ़ विवि से अंतरराष्ट्रीय संबंध विषय में स्नातकोत्तर और बाद में कानून की डिग्री हासिल की।
संगमा 30 साल की उम्र में तुरा लोकसभा क्षेत्र से निचले सदन के सदस्य बने थे । यह वह दौर था जब आजादी के बाद पहली बार सत्ता पर कांग्रेस की पकड़ ढीली हो रही थी और देश में बड़ा राजनीतिक बदलाव करवटें ले रहा था। लेकिन उस दौर में भी संगमा कांग्रेस की टिकट पर जीत कर लोकसभा पहुंचे । दो साल से भी कम समय में जनता पार्टी सत्ता से बाहर हो गयी और चरण सिंह सरकार कुछ ही महीनों तक टिक पायी। 1980 में लोकसभा के मध्यावधि चुनाव में इंदिरा गांधी की अगुवाई में कांग्रेस केंद्र की सत्ता में लौटी और संगमा फिर से अपनी तुरा सीट पर चुनाव जीत गए ।
पार्टी में तेजी से आगे बढ़ते हुए संगमा 1975 में मेघालय कांग्रेस समिति के महासचिव चुने गए। राजीव गांधी सरकार में वह वाणिज्य और आपूर्ति मंत्री बनाए गए । 1992 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव के कार्यकाल में वह कोयला मंत्रालय के स्वतंत्र प्रभार वाले मंत्री भी रहे । उन्हें श्रम मंत्रालय में प्रधानमंत्री की सहायता करने की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी सौंपी गयी। लोकसभा स्पीकर के रूप में अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए संगमा अधिकतर अवसरों पर अपनी हास परिहास की प्रकृति, मिलनसार स्वभाव और निष्पक्षता के चलते सदस्यों से नियमों का पालन करवाने में सफल रहे। और ऐसा उन्होंने गर्मागर्म बहसों के बीच भी सफलतापूर्वक किया। सदन की गरिमा और परंपरा के प्रति उनकी निष्ठा ने सांसदों के बीच में उन्हें विशेष सम्मान दिलाया। विभिन्न दलों के नेता आज भी उनके दिल खोल कर लगाए जाने वाले ठहाकों, उत्साह और विवेकशीलता को याद करते हैं, जिनके चलते सदस्यों के लिए उनकी बात की अवज्ञा करना मुश्किल हो जाता था।
पूर्वोत्तर से पहले लोकसभा अध्यक्ष पी ए संगमा की राजनीतिक बिसात पर पारी लंबी और अनुभवों से भरी रही । पी ए संगमा राजनीति में ऐसे कद के नेता माने जाते हैं जिन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विदेशी मूल को चुनौती दी थी । यह अलग बात है कि बाद में वह संप्रग सरकार के सहयोगी बन गए । उनके राजनीतिक जीवन ने फिर करवट ली और वह प्रणव मुखर्जी के खिलाफ भाजपा के समर्थन से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बन मैदान में उतर आए। लंबे समय तक कांग्रेसी रहे संगमा राजीव गांधी सरकार में मंत्री बने थे और बाद में नरसिंह राव सरकार में उन्हें श्रम मंत्री बनाया गया। 1996 में सभी दलों के समर्थन से वह लोकसभा स्पीकर बने। उस समय भाजपा की अल्पकालिक सरकार की कमान बतौर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के हाथों में आयी थी। नौ बार लोकसभा के सदस्य रहे 68 वर्षीय पी ए संगमा का आज दिल्ली में दिल का दौरा पड़ने के कारण निधन हो गया।
20 मई 1999 को संगमा को शरद पवार और तारिक अनवर के साथ विदेशी मूल को लेकर सोनिया गांधी के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद करने को लेकर कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने पवार और अनवर के साथ मिलकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया। बहुमुखी प्रतिभा के धनी संगमा 2004 में राकांपा से अलग हो गए और अपने गुट को राष्ट्रवादी तृणमूल कांग्रेस का नाम देकर उसका ममता बनर्जी की अगुवाई वाली तृणमूल कांग्रेस में विलय कर दिया। 20 जून 2012 को पवार द्वारा राष्ट्रपति पद की उनकी उम्मीदवारी का विरोध किए जाने पर उन्होंने संप्रग के घटक दल के नेता के रूप में त्यागपत्र दे दिया। एक दिन बाद भाजपा ने संगमा को पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया । हालांकि प्रणव मुखर्जी के मुकाबले वह चुनाव हार गए ।11वीं लोकसभा के सदस्य के तौर पर संगमा को सदन में आक्रोशित सदस्यों को अपने हास परिहास, अपनत्व और निष्पक्षता की भावना से शांत करने के लिए जाना जाता था ।