नोटबंदी के दौरान हुई पीड़ा का प्रतीक है, अखिलेश यादव का खजांची, मनायेगा पहला जन्मदिन
November 7, 2017
लखनऊ, जहां देश मे नोटबंदी के एक साल पूरे हो रहें हैं और पक्ष व विपक्ष अपने-अपने तरीके से नोटबंदी को याद करेगा वहीं एक शख्स और है जिसका नोटबंदी से गहरा रिश्ता है। क्योंकि वह नोटबंदी के कारण आम आदमी को हुई परेशानियों का प्रतीक बन गया है।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के खजांची को आप नही भूले होंगे। अखिलेश यादव अपनी हर जनसभा मे नोटबंदी का जिक्र करते हुये खजांची के बारे मे बताना नही भूलते थे। उन्होंने दर्जनों सभाओं में खजांची का जिक्र करते हुये उसे आम आदमी को नोटबंदी से हुई परेशानियों का प्रतीक बना दिया और केंद्र पर नोटबंदी को लेकर हमला किया. आज भी खचांची और उसका परिवार, आम आदमी ही की तरह नोटबंदी के दुष्प्रभावों से घिरा हुआ है।
8 नवंबर को नोटबंदी लागू होने के बाद, दिसंबर तक आम आदमी के हालात बद से बदतर हो रहे थे। कानपुर देहात के झींझक ब्लॉक के सरदारपुर जोगी डेरा गांव की रहने वाली सर्वेशा भी मजबूरी मे पैसे के लिये बैंक की लंबी लाईन मे लगी थी। वह गर्भवती थी। दो दिसंबर 2016 को पंजाब नेशनल बैंक में सुबह 9 बजे से लाइन में लगी सर्वेशा को जब शाम हुई तो दर्द बढऩे लगा। लेकिन बैंकवालों ने इस स्थिति मे भी उसे पैसे नहीं दिये।
आखिरकार शाम 4 बजे बैंक की सीढिय़ों पर ही सर्वेशा को प्रसव हो गया। उसने बेटे को जन्म दिया, तो सभी ने बच्चे का नाम खजांची रख दिया। तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को जब सर्वेशा और खजांची के बारे मे पता चला तो उनकी बुरी आर्थिक स्थिति को देखते हुये अखिलेश यादव ने उसे दो लाख रुपये की मदद दी।
सर्वेशा देवी बताती हैं कि पुत्र खजांची के जन्म के छह माह पहले पति ने लंबी बीमारी के बाद साथ छोड़ दिया। पति के निधन के बाद उस को ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया। इसके बाद बड़ा बेटा शिवा क्षयरोग से ग्रसित हो गया। जिसकी बीमारी में इलाज के लिए खजांची को मिली धनराशि खर्च करनी पड़ी। परिवार में खजांची के अलावा पुत्री प्रीती (10), पुत्र शिवा (8), धीरज (6), गगन (4) है।
खजांची की मां सर्वेशा देवी ने बताया कि ज्यादातर रुपये अब तक घर के कर्ज व बीमारी में खर्च हो गए हैं। अब खजांची की देखभाल और पढ़ाई की चिंता उसे सताने लगी है। नोटबंदी के दुष्प्रभावों की तरह गरीबी और परिवार के हालात खजांची के परिवार को भी घेरे हुये हैं। सर्वेशा अब अपने मायके अनन्तपुर गांव में रहने लगी ह।. घर चलाने के लिए दूसरों के खेतों में फसल काटने से लेकर तमाम काम करती है। सर्वेशा मजदूरी करती है, खजांची खेलता रहता है। परेशानियों से अनजान खजांची अपने बचपन में खोया हुआ है।
खजांची को लेकर उसके आंखों में उम्मीद दिखती है। सर्वेशा देवी का कहना है कि वह अपने बेटे को अच्छी तरह से पढ़ाने की कोशिश करेगी। खजांची उसके लिए काफी भाग्यशाली है। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भी वह दुआयें देती है कि मुश्किल के दौर मे उन्होने मदद की। वह अपने परिवार की खराब स्थिति और खजांची के लिए, नोटबंदी से त्रस्त आम आदमी की तरह ही सरकार से मदद की आशा लगाएं है।
लेकिन सर्वेशा को भी हकीकत सको समझना चाहिये कि हर सरकार अखिलेश सरकार नही होती। खजांची के एक साल का होने में कुछ ही दिन बाकी है, नोटबंदी के दौर में पैदा हुआ खजांची चंद दिन के बाद यानि 2 दिसंबर को अपना पहला जन्मदिन मनाएगा। अब ये तो समय ही बतायेगा कि यह दिन खजांची और उसके परिवार के लिये काला दिवस होता है या कालाधन विरोधी दिवस। बहरहाल NEWS85.IN की तरफ से खजांची को जन्म दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।