नई दिल्ली, पिछले कई समय से लंबित पड़ी न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख दिखाते हुए केंद्र सरकार से दो हफ्तों के भीतर अपना जवाब दाखिल करने को कहा है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से न्यायाधीशों के स्थानांतरण और नियुक्ति को लेकर विस्तृत जानकारी मांगी है। बता दें कि चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर के रिटायर होने के बाद 3 जनवरी को सात जजों के पद रिक्त हो जाएंगे। इन्ही 7 पदों के लिए सरकार ने अपनी सिफारिशें दी थीं।
कॉलेजियम ने इन सभी नामों को स्थगित कर दिया है। कॉलेजियम ने अपनी बैठक में फैसला लिया है कि 4 जनवरी को नए चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर इन नामों पर आखिरी मुहर लगाएंगे। चीफ जस्टिस खेहर के अलावा 3 जनवरी को इस कॉलेजियम में जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस जस्ती चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस मदन बी. लोकोर भी शामिल होंगे।
सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति को लेकर पिछले कुछ समय केंद्र सरकार और न्यायपालिका के बीच टकराव की स्थिति बनी हुई है। इस वजह से जजों की नियुक्ति में भी जरूरत से ज्यादा समय लग रहा है। हालांकि कॉलेजियम के कुछ सदस्य लगातार जस्टिस चेलमेश्वर को बैठक में आने के लिए मनाने में लगे हैं। कॉलेजियम के सभी सदस्यों का मानना है कि उनके अनुभव और ज्ञान से सुप्रीम कोर्ट के लिए काबिल जजों को नियुक्त किया जा सकेगा। कॉलेजियम ने ये सुझाव भी दिया है कि सुप्रीम कोर्ट के लिए नियुक्त होने वाले जजों का कार्यकाल कम से कम पांच साल का होना चाहिए।
ऐसा देखा गया है कि रिटायरमेंट से कुछ महीने पहले ही हाइकोर्ट के जजों को सुप्रीम कोर्ट के लिए नियुक्त किया जाता है। ज्यादातर जजों को 62 साल की उम्र में सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त किया जाता है। ऐसे में उन्हें सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ तीन साल ही मिल पाते हैं। तीन साल के कार्यकाल में बहुत से काबिल जजों को बेंच की अध्यक्षता करने का मौका भी नहीं मिल पाता। ये जूनियर जज के रूप में ही रिटायर हो जाते हैं। ये प्रक्रिया सही नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के लिए नियुक्त होने वाले जजों को काम करने के लिए कम से कम पांच साल का समय मिलना चाहिए ताकि उन्हें बेंच की अध्यक्षता करने का भी मौका मिल सके। अगस्त से कॉलेजियम में हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए मेमोरंडम ऑफ प्रोसीजर लंबित है। इस मुद्दे पर भी नए चीफ जस्टिस की नियुक्ति के बाद ही फैसला हो सकेगा।