मध्यप्रदेश के व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापम) की मेडिकल प्रवेश परीक्षा में बड़े पैमाने पर हुई नकल के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी 634 मेडिकल छात्रों को राहत देने से इंकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि मेडिकल छात्रों को नकल कर दाखिला पाने के मामले में पांच साल तक आर्मी अस्पतालों में फ्री में काम करना होगा। उसके बाद ही उन्हें उनकी मेडिकल की डिग्री दी जाए।
अदालत का मानना है कि छात्रों के लिए उनके किए पर यही उचित सजा है। वहीं, इस मामले को लेकर अन्य न्यायमूर्ति अभय मनोहर सप्रे ने साथी जज द्वारा दी गई सजा के तरीके पर मतभेद व्यक्त करते हुए छात्रों के मामले में हाईकोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय को बरकरार रखते हुए छात्रों की याचिका को खारिज कर दिया है। अब इस मामले में अंतिम आदेश के लिए मामले को मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर के समक्ष भेज दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर ने कहा कि यह एक बड़े जनहित और छात्रों के भविष्य को देखते हुए बेहतर होगा कि नकल के आरोपी 634 छात्र पांच साल तक बिना वेतन के आर्मी अस्पतालों में नौकरी करें। उसके बाद उनके भविष्य को देखते हुए उन्हें डिग्री दे दी जाए। जिसके बाद उन्होंने छात्रों की ओर से दायर याचिका को खारिज कर दिया।
यह है पूरा मामला: मध्यप्रदेश में वर्ष 2008-2012 मेडिकल कोर्स के लिए राज्य सरकार द्वारा व्यापम परीक्षा कराई गई। इस परीक्षा में बड़े स्तर पर एक आर्गेनाइज तरीके से नकल की गई। इस परीक्षा में पास हुए 634 छात्रों को विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में दाखिला मिल गया। इसके बाद जब व्यापम में नकल के रैकेट का भंडाफोड़ हुआ तो इस बात को लेकर काफी बवाल मचा। जिसकी राज्य सरकार ने जांच कराई और वर्ष 2008 के व्यापम परीक्षा के जरिये मेडिकल कोर्सों में दाखिला पाने वाले 634 छात्रों का दाखिला रद्द कर दिया गया था। उक्त सभी छात्रों ने सरकार के निर्णय को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने सभी छात्रों की याचिका को खारिज करते हुए राज्य सरकार के निर्णय को बरकरार रखा था। इसके बाद छात्रों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष अनुमति याचिका दायर की गई थी। याचिकाकर्ता छात्रों का कहना था कि उन्होंने मेडिकल कोर्सों में दाखिला पाने के बाद पढ़ाई करते हुए अपने कई सेमेस्टर भी पूरे कर लिए हैं। केवल इस आधार पर कि प्रवेश परीक्षा में नकल हुई तो उनका दाखिला रद्द नहीं किया जाना चाहिए। इसलिए राज्य सरकार को उन्हें इतना कठोर दंड नहीं देना चाहिए। राज्य सरकार को उनके कैरियर से खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। लिहाजा, राज्य सरकार को मामले में उचित आदेश जारी किया जाए।