नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने झारखंड में कथित भूमि घोटाले से संबंधित धन शोधन के एक मामले में तीन माह से अधिक समय से न्यायिक हिरासत में जेल में बंद पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अंतरिम जमानत याचिका पर विचार करने से बुधवार को इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की अवकाशकालीन पीठ ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने इस तथ्य का खुलासा नहीं किया कि उन्होंने एक साथ दो अलग-अलग याचिकाएं दायर की थीं। एक में उन्होंने अपनी गिरफ्तारी को चुनौती दी थी, जबकि दूसरी में जमानत की गुहार वाली। निचली अदालत ने इसका संज्ञान भी लिया था।
पीठ ने सुनवाई के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री सोरेन का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल से पूछा,“हमें बताएं कि इसका उल्लेख (याचिका में) कहीं भी क्यों नहीं किया गया कि अदालत द्वारा संज्ञान लिया गया था।”
पीठ ने कहा,“हम उस व्यक्ति की याचिका पर विचार नहीं कर सकते, जिसका आचरण (तथ्यों का खुलासा नहीं करने के मामले में) दोषपूर्ण है।”
इसके बाद श्री सिब्बल ने अदालत के समक्ष याचिका वापस लेने अनुमति की गुहार लगाई, जिसे स्वीकार कर लिया गया। इस तरह सोरेन ने अपनी याचिका वापस ले ली।
शीर्ष अदालत ने इस तथ्य का हवाला दिया कि शिकायत पर चार अप्रैल 2024 को संज्ञान लिया गया था और तत्काल याचिका में इसका उल्लेख नहीं किया गया था।
श्री सिब्बल ने तर्क दिया कि गलती संबंधित अधिवक्ता की थी। इसमें मुवक्किल (सोरेन) की कोई ग़लती नहीं है। वह तो जेल बंद है।
इसके बाद पीठ ने कहा,“आपका आचरण दोषमुक्त नहीं है। यह निंदनीय है।”
श्री सिब्बल ने अंततः उच्च न्यायालय के 3 मई के फैसले के खिलाफ दायर याचिका वापस ले ली, जिसने 31 जनवरी को प्रवर्तन निदेशालय द्वारा (सोरेन की) गिरफ्तारी की वैधता पर सवाल उठाने वाली उनकी याचिका खारिज कर दी थी।
पीठ ने यह भी कहा कि अदालत गर्मी की छुट्टियों के दौरान काम कर रही है। शासन में बैठे लोगों को इसका ध्यान रखना चाहिए और याचिका दायर करने में देरी के समाधान पर विचार करना चाहिए।
इससे पहले श्री सिब्बल ने सोरेन की अंतरिम जमानत की गुहार लगाते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बराबर राहत की मांग की थी, जिन्हें 10 मई को मौजूदा लोकसभा चुनावों के दौरान प्रचार के लिए एक जून तक अंतरिम जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया गया था।
शीर्ष अदालत ने श्री सोरेन से यह बताने को कहा था कि क्या वह (अदालत) उनकी गिरफ्तारी की वैधता की जांच कर सकता है, क्योंकि जमानत से इनकार करने वाले आदेश में कहा गया है कि उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है।
शीर्ष अदालत ने कहा था कि ईडी के पास इस मामले में योग्यता के आधार पर एक अच्छा मामला है, लेकिन बाद के घटनाक्रमों को देखते हुए इसे एक अलग नजरिए से देखना होगा।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दिपांकर दत्ता की (शीर्ष अदालत की) पीठ 17 मई को आदेश पारित किया था कि पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की याचिका पर शीर्ष अदालत की अवकाशकालीन पीठ 21 मई को सुनवाई करेगी।