स्वस्थ रहने के लिए तथा शरीर को क्रियाशील बनाए रखने के लिए भोजन किया जाता है। भोजन शरीर को चुस्त-दुरूस्त रखने का साधन है। साध्य नहीं।
जब हारे-थके हो, तब भोजन नहीं करें। थोड़ा फ्रैश होकर ही भोजन करें। इसके लिए हाथ, मुंह और पैर धोना आंखों पर ठंडे पानी के छींटे मार लेना, सबसे अच्छा व सस्ता उपाय है।
निश्चित समय पर भोजन तो करें, मगर खूब शांत मन से, तनाव रहित होकर भोजन करें। चबा-चबाकर भोजन करना, इसको सुपाच्य बना देता है। यह शीघ्र पच सकता है इसमें लार अधिक मिल सकती है। पेट से निकलने वाले पाचक द्रव्य भी पूरा सहयोग दे पाते हैं।
केवल भूख लगने पर ही भोजन करें। निश्चित समय पर भोजन करें। यदि भूख न हो तो एक समय का भोजन त्याग दें।
यदि भूख के समय भोजन नहीं करते हैं तो बहुत हानि होती है। उस समय जठराग्नि प्रदीप्त हो चुकी होती है। भोजन जल्दी पच जाता है। अगला भोजन करने के लिए भी शरीर तैयार किया जा सकता है।
भूख को टालना ठीक नहीं। इससे शरीर में दुर्बलता आने लगती है। -केवल दो मुख्य भोजन करें। एक नाश्ता भी। तीन मुख्य भोजन लेना रोगी बना सकता है। कुछ जपी-तपी तथा वृध्द व्यक्ति एक समय ही भोजन करते हैं। वे हर प्रकार से स्वस्थ भी रहते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि वे तसल्ली से खाना खाकर, इसे पचा भी सकते हैं।
नाश्ता और दोपहर के भोजन में चार घन्टे का अन्तर, दोनों मुख्य भोजनों में सात घंटे का अन्तर, नाश्ता तथा रात्रि भोजन में 11 घंटों का अन्तर उचित माना जाता है।
सोने और रात्रि भोजन में कम से कम दो घन्टे का अन्तर जरूर हो। रात के खाने के बाद टहलना जरूरी है।
सप्ताह में एक व्रत जरूर रखें। व्रत खोलने पर हलका ही भोजन करें। -चबा-चबाकर भोजन करने से दांतों तथा मसूड़ों को शक्ति मिलेगी।
भूख लगने पर ही खाना खाने से यह सुगमता से पच सकता है। डकार शुध्द आते हैं। अपान वायु कम बनती है तथा स्वयं ही निकल जाती है। भोजन विषाक्त नहीं होता। दुर्गन्ध भी नहीं पैदा करता।
रात का भोजन सदा हल्का हो। हमारा दिन भर का आहार संतुलित, सुपाच्य, नियमित, सादा, सात्विक हों। मिर्च मसाले, तेल, घी कम से कम डालें। बासी भोजन न करें। सदा ताजा भोजन करें।
किसी भी अवस्था में कब्ज न होने दें। चबा-चबाकर खाया भोजन कब्ज नहीं करता। अतः रोग भी नहीं होते। कब्ज हो भी जाए तो आंवला चूर्ण आदि लेकर इसे दूर करें। देरी न करें। इन सब बातों को ध्यान में रखने से हम पूर्ण स्वस्थ रह सकते हैं।