लखनऊ, इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में मदरसा अधिनियम, 2004 को असंवैधानिक घोषित करते हुये उत्तर प्रदेश सरकार को मदरसा छात्रों को नियमित स्कूलों में समायोजित करने का निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी और न्यायमूर्ति विवेक चौधरी की खंडपीठ ने यह आदेश अलग अलग याचिकाकर्ताओं की याचिकाओं पर पारित किया।
पीठ ने कहा “ हम मानते हैं कि मदरसा अधिनियम, 2004, धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन है। यह संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 21-ए का और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) अधिनियम, 1956 की धारा 22 का उल्लंघन है। इसलिये मदरसा अधिनियम, 2004 को असंवैधानिक घोषित किया जाता है।”
आदेश में कहा गया “ इसके अलावा, हम आरटीई अधिनियम की धारा 1(5) की वैधता पर निर्णय नहीं ले रहे हैं क्योंकि हमने पहले ही मदरसा अधिनियम को अधिकारातीत माना है। हमें दोनों पक्षों के वकीलों ने भी सूचित किया है कि राज्य में यूपी वैदिक पाठशालाएं मौजूद नहीं हैं।”
पीठ ने कहा कि चूंकि यूपी राज्य में बड़ी संख्या में मदरसे और उसमें पढ़ने वाले छात्र हैं, इसलिए राज्य सरकार को निर्देश दिया जाता है कि वह इन मदरसा छात्रों को प्राथमिक शिक्षा बोर्ड के तहत मान्यता प्राप्त नियमित स्कूलों के साथ हाई स्कूल और इंटरमीडिएट शिक्षा बोर्ड के तहत मान्यता प्राप्त स्कूलों में समायोजित करने के लिए तुरंत कदम उठाए। उन्होने कहा “ उक्त उद्देश्य के लिए राज्य सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि आवश्यकता के अनुसार पर्याप्त संख्या में अतिरिक्त सीटें बनाई जाएं और यदि आवश्यक हो, तो पर्याप्त संख्या में नए स्कूल स्थापित किए जाएं। राज्य सरकार यह भी सुनिश्चित करेगी कि छह से 14 वर्ष की आयु के बच्चे विधिवत मान्यता प्राप्त संस्थानों में प्रवेश के बिना नहीं छोड़े जायें। ”
पिछले फैसलों का हवाला देते हुए पीठ ने कहा, “ उपरोक्त सभी फैसलों में, उच्चतम न्यायालय द्वारा तय किया गया सुसंगत कानून यह है कि उच्च शिक्षा केंद्र सरकार के लिए आरक्षित क्षेत्र है। इसलिए, राज्य सरकार के पास उक्त क्षेत्र में कानून बनाने की कोई शक्ति नहीं है।”
आदेश में कहा गया है, “ मदरसा अधिनियम की धारा 9 (ए) बोर्ड को आलिम यानी स्नातक पाठ्यक्रम, कामिल यानी स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए पाठ्य-पुस्तकें तथा अन्य शिक्षण सामग्री निर्धारित करने की शक्ति प्रदान करती है। धारा 9 (ई) मदरसा बोर्ड को उन व्यक्तियों को डिग्री देने का अधिकार देती है, जिन्होंने बोर्ड द्वारा विशेषाधिकार प्राप्त या मान्यता प्राप्त संस्थान में अध्ययन का कोर्स किया है या यहां तक कि जिन्होंने निजी तौर पर अध्ययन किया है और बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण की है।”
उन्होने कहा “ मदरसा अधिनियम की धारा 9 (एफ) बोर्ड को आलिम (स्नातक), कामिल (स्नातकोत्तर) और फाजिल (जूनियर रिसर्च प्रोग्राम) पाठ्यक्रमों की परीक्षा आयोजित करने का अधिकार देती है, धारा 9 (जी) मदरसा बोर्ड को संस्थानों को मान्यता देने का अधिकार देती है इसकी परीक्षा के उद्देश्य और धारा 9 (एच) इसे उम्मीदवारों को अपनी परीक्षा में प्रवेश देने का अधिकार देती है। धारा 9 (पी) मदरसा बोर्ड को मदरसा-शिक्षा की किसी भी शाखा में अनुसंधान या प्रशिक्षण प्रदान करने का अधिकार देती है।”
आदेश में कहा गया है, “ 12 अगस्त 1995 को राज्य सरकार में एक अलग अल्पसंख्यक विभाग बनाया गया था और 31 जनवरी 1996 को मदरसों का काम शिक्षा विभाग से इस नए अल्पसंख्यक विभाग में स्थानांतरित कर दिया गया था। 1987 के पहले के गैर-वैधानिक नियमों को बदल दिया गया था। एक विशेष धर्म के लिए एक अलग शिक्षा बोर्ड की आवश्यकता कैसे और क्यों उत्पन्न हुई, जबकि यूपी राज्य में धर्मनिरपेक्ष प्राथमिक शिक्षा बोर्ड और हाई स्कूल और इंटरमीडिएट शिक्षा के लिए बोर्ड हैं जो विभिन्न धर्मों के बच्चों के बीच कोई अंतर किए बिना सभी को शिक्षा प्रदान करते हैं। ”