मुंबई, राष्ट्रीय जांच एजेंसी, एनआईए ने आज महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ता ,एटीएस के उन आरोपों को खारिज किया जिसमें एटीएस ने आरोप लगाया था कि मालेगांव में वर्ष 2006 के बम विस्फोट मामले की एटीएस और सीबीआई द्वारा जांच के प्रभाव को कम करने के लिए एनआईए ने पूर्व निधारित तरीके से जांच की थी।
एनआईए ने हलफनामा में कहा है कि साक्ष्यों के आधार पर गहन जांच करने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि विस्फोट हिंदू संगठनों ने किया था। यह कहना गलत है कि एनआईए ने एक पूर्व निर्धारित में जांच का आयोजन किया है।
हलफनामा में आगे कहा गया है कि एनआईए के जांच के अनुसार मनोहर नरवारियाए राजेन्द्र चौधरी, धान सिंह, शिव सिंह, लोकेश शर्मा, रामचंद्र कलसांगरा, सुनील जोशी, रमेश महाल्कर, संदीप डांगे और कुछ अन्य लोग कथितरूप से जनवरी से सितंबर 2006 के बीच आतंकी हमला मालेगांव में करने की साजिश रची थी। इसका प्रशिक्षण केन्द्र इंदौर में था और वहीं बम बनाया गया और बाद में मालेगांव भेजा गया। नरवारिया, चौधरी ए सिंह और कलसांगरा ने मालेगांव में बम रखा था। आरोपियों ने मुसलमान बहुल इलाके में बम रखा ताकि मालेगांव में हिंदू और मुसलमान के बीच सांप्रदायिक दंगा हो।
खंडपीठ के न्यायाधीश रणजीत मोरे और न्यायाधीश ए एम बदर ने मामले की अगली सुनवाई 19 जनवरी तक स्थगित कर दी।
एनआईए ने बम्बई उच्च न्यायालय में एटीएस द्वारा दायर याचिका के जवाब में आज हलफनामा दाखिल किया। जिसमें 2006 के मालेगांव बम विस्फोट मामले में आठ मुस्लिम लोगों को छोड़े जाने की चुनौती दी है।
इस वर्ष अप्रैल माह में सत्र अदालत ने उन मुसलमान आरोपियों को सभी आतंकवादी गतिविधियों से बरी कर दिया जिसे एटीएस और सीबीआई ने आरोपी ठहराया था। एनआईए ने इस विस्फोट में हिंदू संगठनों का हाथ होने पर जिम्मेदार ठहराते हुए याचिका दाखिल की थी।
एटीएस ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और दावा किया कि सत्र अदालत का आदेश गैर कानूनी और अन्याय पूर्ण है क्योंकि यह साक्ष्यों के खिलाफ है। एटीएस का कहना है कि मुसलमानों ने मस्जिद के अंदर बम नहीं रखा यह कहना पूरी तरह गलत है और इसका कोई कानूनी अाधार नहीं है।