नई दिल्ली, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि बजट पेश करने की तारीख पहले करने से वास्तविक अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर होगा क्योंकि इससे विभिन्न क्षेत्रों की योजनाओं के लिए वित्त वर्ष की शुरुआत में ही अधिकृत कोष उपलब्ध हो जाएगा। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि यदि लोगों के पैसे का उचित तरीके से इस्तेमाल होगा तो उन्हें कर देने में कोई परेशानी नहीं होगी।
नीति आयोग की आर्थिक नीतियां-आगे का रास्ता विषय पर आयोजित बैठक में अर्थशास्त्रियों को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि बजट चक्र में बदलाव का वास्तविक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव होगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि बजट पेश करने की तारीख को पहले किया गया है ताकि नए वित्त वर्ष की शुरुआत में ही खर्च के लिए अधिकृत पूंजी उपलब्ध हो सके। सरकार ने वित्त वर्ष 2017-18 का बजट एक फरवरी को पेश करने का प्रस्ताव किया है। आमतौर पर बजट फरवरी महीने की आखिरी तारीख को किया जाता है। अगले वित्त वर्ष के लिए अलग से रेल बजट भी नहीं पेश किया जाएगा। सरकार ने रेल बजट को आम बजट में मिलाने का फैसला किया है। मौजूदा बजट कैलेंडर पर मोदी ने कहा कि खर्च के लिए मंजूरी मानसून के आगमन पर मिलती है, जिससे सरकार के कार्यक्रम सामान्य तौर पर उत्पादक मानसून पूर्व के महीनों में निष्क्रिय रहते हैं।
मोदी ने अर्थशास्त्रियों से आगामी बजट में रोजगार सृजन, कृषि, कौशल विकास तथा शिक्षा पर उनके विचार मांगे। मोदी ने आर्थिक वृद्धि की रफ्तार बढ़ाने के लिए युवाओं की ताकत को जोड़ने पर जोर दिया। दो घंटे तक चली बैठक में मोदी ने सरकार के विभिन्न विभागों के बीच बेहतर सहयोग पर भी जोर दिया।
नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने संवाददाताओं को बैठक का ब्योरा देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) तथा केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीईसी) को अलग-अलग काम नहीं करना चाहिए और आंकड़ों को साझा करना चाहिए। मोदी ने कहा कि ऐसा नहीं है कि करदाता कर नहीं देना चाहते, पर वे सिर्फ यह चाहते हैं कि उनके पैसे का सही इस्तेमाल हो। प्रधानमंत्री ने कहा कि यदि करदाता को दिखे कि उनके कर से अस्पताल बनाया जा रहा है तो कोई कर देने में हिचकिचाएगा नहीं। लेकिन यदि उनके पैसे का इस्तेमाल सही तरीके से नहीं होगा तो लोग कर भी नहीं देना चाहेंगे।
नीति आयोग के तत्वावधान में यह बैठक फरवरी में पेश होने वाले आम बजट से पहले हुई है। बैठक में नोटबंदी के अर्थव्यवस्था पर प्रभाव की चर्चा के बारे में पूछे जाने पर पनगढ़िया ने कहा कि इसका उल्लेख सिर्फ अर्थव्यवस्था को औपचारिक करने के हिस्से के रूप में हुआ। पनगढ़िया ने कहा कि प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने तीन क्षेत्रों- कृषि, रोजगार, कौशल और शिक्षा और बजट पर विशेषज्ञों के विचार सुने। प्रधानमंत्री मोदी के साथ बैठक में अर्थशास्त्रियों ने कई आर्थिक बिंदुओं मसलन कृषि, कौशल विकास और रोजगार सृजन, कराधान तथा शुल्क संबंधी मामले, शिक्षा, डिजिटल प्रौद्योगिकी, आवास, पर्यटन, बैंकिंग, संचालन के सुधार, डाटा आधारित नीति तथा भविष्य की वृद्धि के लिए कदमों पर अपनी राय दी। कृषि क्षेत्र के विशेषज्ञों ने बाजार सुधारों के लिए राज्यों को प्रोत्साहन देने, कृषि मशीनीकरण तथा सूक्ष्म सिंचाई के लिए कोष बनाने, मियादी ऋण पर ब्याज सहायता देने तथा 2022 तक कृषि आय को दोगुना करने पर सुझाव दिए।
बैठक में अर्थशास्त्रियों ने आयकर दरों में कटौती करने तथा सीमा शुल्क दरों का वैश्विक स्तर पर प्रचलित दरों के साथ तालमेल बिठाने की वकालत की ताकि आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहन मिल सके। बैठक में अन्य लोगों के अलावा वित्त मंत्री अरुण जेटली, नीति आयोग के उपाध्यक्ष पनगढ़िया और केंद्र सरकार तथा नीति आयोग के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे। इनके अलावा बैठक में प्रवीण कृष्ण, सुखपाल सिंह, विजय पाल शर्मा, नीलकंठ मिश्रा, सुरजीत भल्ला, पुलक घोष, गोविंदा राव, माधव चव्हाण, एनके सिंह, विवेक दहेजिया, प्रमथ सिन्हा, सुमित बोस और टीएन नाइनन जैसे अर्थशास्त्री और विशेषज्ञ मौजूद थे।