लखनऊ, विधानसभा चुनाव में हार-जीत के लिए प्रत्याशी तमाम जतन कर रहे हैं। ऐसे में राजनीतिक दलों ने विभिन्न जातियों के नेताओं को अपनी जाति के वोट दिलवाने के लिए प्रचार में उतार दिया है। वह अपनी जातियों के वोटरों पर डोरे डालकर अपनी-अपनी पार्टियों को वोट डालने का दबाव बना रहे हैं।
प्रदेश में सरकार बनाने को आतुर भाजपा ने भी सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला अपना कर टिकट बांटे हैं। अब इन प्रत्याशियों को जिताने के लिए सोशल इंजीनियरिंग के जरिए विभिन्न जातियों के असरदार नेताओं को स्टार प्रचारक के तौर पर प्रचार में उतारा गया है। 11 फरवरी को होने वाले प्रथम चरण के मतदान के लिए प्रचार पूरे जोर-शोर से चल रहा है। भाजपा ने जाट वोटरों को प्रभावित करने के लिए मेरठ की सिवालखास सीट पर और बड़ौत सीट पर मथुरा की सांसद व अभिनेत्री हेमामालिनी का रोड शो कराया। जिससे जाट वोटर प्रभावित किए जा सके।
इसी तरह से ठाकुर वोटरों को लुभाने के लिए गोरखपुर के सांसद महंत आदित्यनाथ को वेस्ट यूपी में प्रचार का जिम्मा दिया है। शहर सीट पर संकट में फंसे भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी भी व्यापारियों को साधने के लिए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का जनसंपर्क करवा रहे हैं।
वहीं, भाजपा ने गुर्जर वोटों के लिए केंद्रीय राज्य मंत्री कृष्णपाल गुर्जर, पूर्व सांसद अवतार सिंह भड़ाना को जिम्मा सौंपा है।
इसी तरह से जाट वोटों के लिए केंद्रीय मंत्री डाॅ. संजीव बालियान को जिम्मा दिया है। त्यागी मतों के लिए प्रदेश उपाध्यक्ष अश्विनी त्यागी को जिम्मेदारी दी गई है।
अन्य पिछड़ा वर्ग के वोटरों पर डोरे डालने के लिए उन्हीं वर्गों के नेताओं को मैदान में उतारा है। स्वामी प्रसाद मौर्या, केसव प्रसाद मौर्या, भूपेन्द्र सिंह यादव, राजवीर सिंह आदि को पिछड़ा वर्ग के वोटरों पर डोरे डालने के लिए लगा दिया गया है।
बसपा प्रमुख मायावती खुद प्रचार की कमान संभाले हुए हैं। दलित वोटों की कमान बसपा प्रमुक ने खुद संभाली हुयी है, तो मुस्लिम वोटों के लिए नसीमुद्दीन सिद्दीकी पूरी वेस्ट यूपी को मथ रहे हैं। वही, ब्राहमण वोटों के लिये सतीश मिश्रा को लगाया गया है।
इसी तरह से सपा मुखिया व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खुद प्रचार अभियान पर निकल चुके हैं और ताबड़तोड़ रैली कर रहे हैं। उन्होने फिलहाल जाति के बजाय विकास को तरजीह दे रखी है। लेकिन मुस्लिमों को रिझाने के लिए आजम खां, शाहिद मंजूर जनसंपर्क कर रहे हैं।
कांग्रेस ने भी जाति के बजाय साम्प्रदायिकता को प्राथमिकता देते हुये, कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने खुद प्रचार की कमान संभाली हुई है। लेकिन आगे रणनीति बदल सकती है।
वोटों के सौदागर भी सक्रिय नेताओं के साथ ही शहरों और गांवों में वोट दिलाने का ठेका लेने वाले ठेकेदार भी सक्रिय हो गए हैं। शहरों में इन सौदागरों ने हाॅस्टलों में रहने वाले छात्रों, किराएदारों और मजदूरों के वोट बनवा रखे हैं। शहरों में बिहार, बंगाल से आने वाले मजदरों की तादात के कारण ठेकेदारों की पौ-बारह हो जाती है। यह ठेकेदार अपने वोटर कार्ड बनवाकर अपने पास रख लेते हैं और चुनावों में इनका इस्तेमाल करते हैं। गांवों में भी वोटों के ठेकेदार पूरी तरह से सक्रिय हो गए हैं और प्रत्याशियों को वोट दिलाने का सब्जबाग दिखा रहे हैं।