लखनऊ, उत्तर प्रदेश के समाज कल्याण मंत्री रमापति शास्त्री ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाते हुए कहा कि पिछली सरकार के तमाम निर्णय इसे साबित करते हैं।
उन्होंने कहा कि अखिलेश चुनाव की दृष्टि से दलितों के पक्ष में कितने भी बयान दें लेकिन अपने मुख्यमंत्रित्व काल में उन्होंने हमेशा दलितों के विरोध में ही काम किया। दलित वर्ग यह कभी नहीं भूलेगा और चुनाव में इसका जवाब भी देगा। सपा के मुख्यमंत्री के रूप मे अखिलेश यादव ने अपने शुरुआती निर्णयों मे उन सभी जिलों का नाम बदल दिया था, जिन्हें पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने दलित महापुरुषों और गुरुओं के नाम पर रखा था।
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री रहते हुए बसपा नेता मायावती ने तीन नए जिले बनाए थे और इनके समेत आठ जिलों के नाम बदलने का निर्णय लिया था। इनमें भीमनगर, प्रबुद्धनगर व पंचशीलनगर, 2011 में अस्तित्व में आए, जिनका नाम अखिलेश ने बदलकर क्रमश: संभल, शामली और हापुड़ कर दिया।
साथ ही मायावती द्वारा बदले गए चार अन्य जिलों रमाबाईनगर, महामायानगर, कांशीरामनगर व छत्रपति शाहूजी महाराज के नाम वापस क्रमशः कानपुर देहात, हाथरस, कासगंज और अमेठी कर दिया था।
यही नहीं, मायावती सरकार द्वारा लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के परिवर्तित नाम “छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय” को भी सपा शासन में अखिलेश यादव ने बदल कर पुनः उसके पुराने नाम को बहाल कर दिया था। इसी तरह सपा सरकार ने लखनऊ के गोमतीनगर स्थित भीमराव अंबेडकर हरित पार्क का नाम बदलकर जनेश्वर मिश्रा पार्क कर दिया था।
रमापति शास्त्री ने कहा कि अखिलेश यादव के शासनकाल में ही उनका दलित विरोधी चेहरा सबके सामने आ गया था। उनके शासनकाल में माफिया-गुंडे दलितों का शोषण करते थे और जब इसकी शिकायत लेकर वे पुलिस के पास जाते थे तो उनकी न तो एफआईआर दर्ज होती थी और न ही कोई कार्रवाई होती थी। अखिलेश यादव को दलितों के बारे में बात करने का भी कोई हक नहीं है।