वित्त मंत्री अरूण जेटली ने राज्यसभा में कहा कि विधायिका के कई अधिकार एक-एक कर न्यायपालिका के पास चले गए हैं और ऐसा नहीं होना चाहिए कि ऐसे और अधिकार उसके पास चले जाए। उन्होंने सवाल किया क्या बजट भी न्यायपालिका के हवाले कर दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि विधायिका की शक्तियां लगातार कम हो रही है। जेटली के इस बयान का सत्ता पक्ष के साथ ही कांग्रेस तथा विपक्ष के दूसरे सदस्यों ने मेज थपथपा कर समर्थन किया।
जेटली ने सदन आम बजट से संबंधित विनियोग विधेयक तथा वित्त विधेयक पर हुई चर्चा का जबाव देते हुए कहा कि कांग्रेस ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) दर को 18 प्रतिशत पर सीमित करने तथा इसके विवादों के समाधान के लिए उच्चतम न्यायालय के न्यायधीशों की समिति के हवाले करने और विनिर्माता राज्यों के लिए एक फीसदी अतिरिक्त कर लगाने का प्रस्ताव किया है। उन्होंने कहा कि विधायिका विशेषकर संसद के पास कराधान का अधिकार बचा हुआ है और इसे भी न्यायपालिका के हवाले नहीं कर देना चाहिए।
जेटली ने कहा कि किस वस्तु पर कितना कर लगेगा यह तय करना विधायिका का काम है। इसे संविधान का हिस्सा नहीं बनाया जा सकता है। यदि कभी किसी कारण से जीएसटी कर दर में बढ़ोत्तरी करने की जरूरत पड़ी तो इसके लिए संविधान संशोधन करना होगा और यह प्रक्रिया कितनी जटिल होगी इसके बारे में कुछ कहने की जरूरत नहीं है। उन्होंने इसके लिए एक उदाहरण भी दिया कि संविधान सभा में कई वकील सदस्य थे और उस समय पेशेवरों पर कर को 250 रुपये सीमित कर दिया गया था और अब जाकर उसे बढ़ाकर 2500 रुपए किया गया है जबकि चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी भी इससे अधिक कर देता है।